ऋषिमण्डल-स्तोत्र | Rishimandal Stotra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rishimandal Stotra by चन्दनमल नागौरी - Chandanmal Nagori

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चन्दनमल नागौरी - Chandanmal Nagori

Add Infomation AboutChandanmal Nagori

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भु ऋषि मंदल नकल कका: गया दे । मंत्र उपर सम्पूर्ण श्रद्धा रखने वाछे और मंत्र को नहीं मानने वाछे दोनो आधुनिक कालमे मोजूद हैं, छेकिन मंत्र वक, मंत्र बक्ति, मंत्र भाव के वहुत से एसे प्रमाण मिछ्ते हैं कि इस विपय में स्थमाविक श्रद्धा मजुप्य को . दो जाती है, और मंत्र मभाव से याने मंत्र का सिद्ध फर के बहुत सी व्यक्तियोंने विजय पाई हैं। मेत्र अर्यात्‌ अमुक अस्रों की अमुक मकार की सड्डठना। एसी सक्ञछना से परिस्थिति पर विशिष्ट असर होती है, और कई विद्वानो का एसा कथन दे । उदाइरण भी है कि, मंत्र पर थद्धा रखने वाले पुरुप गारुदी मंत्र जिसके ममाव से झहर उतर जाता है, और मंत्र बढ से काट कर भग जाने वाढा सांप भी मंत्र के आधीन हो तदुकाल गारुडी की शरण में आता है । इस उदाइरण से समझ सकते हैं कि मंत्र कितने बलवान होते है, इसी तरह मंत्र वछ से दी कई तरह के मयोग “मंदिर को उड़ा ले आना उपदव-रोग-आदि इटाने के छिए किये गये जिन के दृ्टान्‍्त देखने में आते हैं । इस आधुनिक जुद्धिवाद के जमाने में जिस तरह आकर्षण झील विधत और अेरक विधुत के समागम से मकाश उत्पन्न दोता है । तदज् सार भिन्न भिन्न स्वभाव वाले अल्नरों की यथायोग्य रीत से सड्डलना होती है तो उसके मभाव से फिसी अपूर्प शक्ति का मादुभौव होता दे । यदद तो निसन्देद सिद्ध है कि महापुरुषों के उच्यारित सामान्य शब्दों में भी अदूधुत सामर्थ्य समाया




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now