प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियां | Paremchand Ki Servsahth Kahaniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.82 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर सन्त्र रद
'छोटा-सा प्रहसन खेलने की तयारी थी । प्रहसन स्वयं कैलासनाथ
ने लिखा था 1 चद्दी मुख्य ऐक्टर भी था | इस समय बह एक
रेशमी कमी ज्ञ पहने, संगो सिर, नंगे पाँच. इघर-से-उघर मित्रों की
ग्ाच-भगत में लगा हुआ था। कोई पुरझारता--कैलास, ज़रा
इधर ्ाता, कोई इधर से चुलाता--केंलास, क्या उधर ही रहोसे ।
सभी उसे छेड़ते थे चुदले नरते थे । बेचारे को जरा दम सारने
' का ावकाश न मिलता था 1
”... सददसा एक रसणी ने उसके पास घ्ाकर कददा--क्या कैलास,
:« तुम्हारे साँप कहों हैं ? जरा मुझे दिखा दो ।
क्लास ने उससे हाथ मिला रुर कहा--मणालिनी, इस वक्त
लमा करो, कल दिखा दूँगा ।
मृरालिसी से आग्रह क्या--ज्ी नहीं तुम्दे दिखाना पढंगा |
मैं ब्ान्न नहीं मानन की, तुम रोज क्ल-क्ल करते रहते हो ।
मणालिनी अप केलास दोनो सहपाठी थ और एक दूसरे क
प्रेम मे परी हए । क्लास को सापो रे पालन स्वेलासे ओर सचासे
“का शोक था. तरह-तरह के सॉप पल रवस्व थे । उत्तर स्वभाव
स्थौर चरित्र की परोक्षा करत रहते थे. थोड़े दिन हुए, उन्होंस
बिधालय मे सौंपा पर एक स रस काव्य रप्यास दिया था । सॉंपो
को नचाकर दिख ये भी था. एगगि' बस्तर थे बडे-दडे परइत
की यह ब्यास्व्यान सनकर दर रह राय थे. यह बिद्या उसने एक
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सपर स सीखी थी. सोपा को जड़ोीन्यूटियों जमा करन
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श उसे मरज था |, डनना पना भर मिल झाय कि किसी व्यक्ति
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