प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियां | Paremchand Ki Servsahth Kahaniya

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Paremchand Ki Servsahth Kahaniya by चन्द्रगुप्त विध्यालंकर - Chandragupt Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर सन्त्र रद 'छोटा-सा प्रहसन खेलने की तयारी थी । प्रहसन स्वयं कैलासनाथ ने लिखा था 1 चद्दी मुख्य ऐक्टर भी था | इस समय बह एक रेशमी कमी ज्ञ पहने, संगो सिर, नंगे पाँच. इघर-से-उघर मित्रों की ग्ाच-भगत में लगा हुआ था। कोई पुरझारता--कैलास, ज़रा इधर ्ाता, कोई इधर से चुलाता--केंलास, क्या उधर ही रहोसे । सभी उसे छेड़ते थे चुदले नरते थे । बेचारे को जरा दम सारने ' का ावकाश न मिलता था 1 ”... सददसा एक रसणी ने उसके पास घ्ाकर कददा--क्या कैलास, :« तुम्हारे साँप कहों हैं ? जरा मुझे दिखा दो । क्लास ने उससे हाथ मिला रुर कहा--मणालिनी, इस वक्त लमा करो, कल दिखा दूँगा । मृरालिसी से आग्रह क्या--ज्ी नहीं तुम्दे दिखाना पढंगा | मैं ब्ान्न नहीं मानन की, तुम रोज क्ल-क्ल करते रहते हो । मणालिनी अप केलास दोनो सहपाठी थ और एक दूसरे क प्रेम मे परी हए । क्लास को सापो रे पालन स्वेलासे ओर सचासे “का शोक था. तरह-तरह के सॉप पल रवस्व थे । उत्तर स्वभाव स्थौर चरित्र की परोक्षा करत रहते थे. थोड़े दिन हुए, उन्होंस बिधालय मे सौंपा पर एक स रस काव्य रप्यास दिया था । सॉंपो को नचाकर दिख ये भी था. एगगि' बस्तर थे बडे-दडे परइत की यह ब्यास्व्यान सनकर दर रह राय थे. यह बिद्या उसने एक न्यू पं ह् सपर स सीखी थी. सोपा को जड़ोीन्यूटियों जमा करन ५ + कारें श उसे मरज था |, डनना पना भर मिल झाय कि किसी व्यक्ति




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