ओबर्ज की रात | Obarj Ki Rat

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Obarj Ki Rat by मालीराम शर्मा - Maliram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4३ जचती हो खूब सजनी हो खूब दु्हिन सी, तेरे मुनहते बाल ये सोने के बाल रे हैं मम रहे हैं मूच रहे है तेरे बन्धों पर यह ममता यौवन यह पुवारता यौदन यह ललकारता यौवन जगा देता है जीने की हसरत, देखते हो, यद निधोताइट ! यह सारा शमा, रंगीन छत, बेठे हुए लोग, टूज में प्रोज में, रादके पाम वात एक, भ धीम एक तरीका एक मकसद एक ।” हों, मैं दुमहिन हर शाम बी दुलदिन शाम के साथ सुद्दाग आता सुबह के माथ दुदाग आता शाम के साथ प्यार आता शाम के राथ यार आता शाम के साथ, प्यार में ज्वार झादा सुवह के साय उतार बाता शाम है, जाम है शाम है, शराव हैं दाम है, धवाव है ओवर्ज्ध की 1




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