श्री रामस्वयम्बर | shri ramswayamber
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.07 MB
कुल पष्ठ :
1149
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(द्) रामस्वयंवर ।
वरनहूँ रीति वाठमीकी जेहि सुनि पुनोत त्रह्मांडा ॥
उक्ति युक्ति तुरसीकृत केरी और कहां में पाऊं ।
वाठमीकि अरु व्यास गोसाई सूरहि को शिर नाऊं ॥
युगुल भादि कवि युगकढि कविरवि इष्टदेव मम चारों ।
उपजे अधम उधारण कारण सकठ विश्व उपकारी ॥,
काव्य प्रबंध छंद बन्धन को मैं कछ जानईुँ नाहों ।_-
रचहूँ यथामति रामकथा को भजन मानि मन माही ॥
सोरठा-जय जय दृशरथलाठ, अवधपाठ कढिकाठहर ।
अनुपम दीनदयाठ, दे मति करहु निहाठ मोहि ॥
घनाकषरी ।
पाठतप्रनासमाजकरतसधमे राज जाकों दृण्डपरमप्रचंडयंमराजसो ी
ठाजकोजहाजकरेशवन पराजेपरहितसवकानझीठनाकोंद्िजराजसों
भनरघुराजभयाश्रमिमंद्राजराजनियुणीनिवाजनिभोदूजोदिवराजसी!
अवधविरानभाजुवंशाशिरताजचक्रवर्ती औरकौनदश्रत्थमहाराजसी
परम सुजान आठसचिवसुनीतिवानतिनमें सुमन्तरेंप्रधानराजकाजके।
वामदेव त्यें वशिष्ठगुरूउपरोदितरें रक्षनकरयासदाधमेकेजहाज के ।
पूरणप्रकृतिसातधीरवीरदेंविरुयातरयोमहारयीअतिरथीरणसाज के ।
भनेरघुराजजाकासुयशद्राजनाकेवन्धुमित्रमेघीमववान केमिजाजके
छंदू चोबाला ||
सरयू तीर सोदावन कोशाठ नगर वसत अति पावन ।
निन छवि अमरावती उनावन सुरन मोद उपनावन ॥
दादश याजन उम्न मान तेहि याजन थे विस्तारा ।
कनक काट अति माट छाट नाद विमठ विशञाठ बजारा ॥
गठी चारु चाडी जमठा सब में देर सुंदर तुद्ग।
नमित कता के उसव पता मान रच्यो जनडा ॥
दृरम मनादर रानगटा छदु फूडन ते छा छाई की
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