अष्टादश पुराण दर्पण | Ashtadaspuran Darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ तर अथ अछ्टादूशपुराणद्पण । बच ऊना उपोदघात- श्रीभगवान्‌ वेदन्यासजीको मणाम करके ओर महर्पियोंका ध्यान करके पुराणविपयकी आठोचना करतेहें कि, पुराण क्या वस्तु है ओर उसमें क्या विपय हे तथा उन पुराणोंका मठ क्याहे सो सम्पूर्ण बात आर्वाचीन ओर माचीन मतोंके निरूपण सहित वर्णन करतेहें प्रथम पुराण शब्दकी उपपनत्ति ठिसतेहें पुराण यह शब्द नपुंसकहे “ पुराभव- मिति पुरा ट्यु [ साप॑ चिरं भाह्ले मगेस्‍्ययेस्यथ्युट्युठो तुदू' च पाणि ० ४1३१३ इससे ट्यू अत्यय ] अथवा [ पर्वकाटेकसर्बजरत्पुराण नवकेवठाः समानाधिकरणेन पा ० २1१।४९ ] इति निपातनाद्‌ तुडभावः यद्दा [ पुराणमोक्तेपु घाझणकल्पेपु पा० ४।३।१ ०५ ] इति निपातितः अथवा पुरा नीयते नी >: ढ + “णत्वश” इसमकार निपातनसे वा ऊपर छिखे मत्ययों्ते पुराण शब्दकी व्युत्पत्तिहि जब कि; पाणिनीय अशष्या- यीमें पुराण शब्दकी व्युत्पत्ति िसीहे तब इसमें नूतनताका भाव नहीं रहता तथापि हम वेदिक प्रेथों सेभी पुराणकी माचीनंता दिखावेंगे, पुराण शब्दका अये पूषेतन हे इसके अनुसार मथम पुराण कहनेसे प्राचीन आस्यायिकादियुक्त अंधविशेष समझा जाताहि अथवंवेद शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैचिरीयारण्यक, महाभाप्य,आश्वठायनग्रह्मसूत्र आपस्तम्बपर्मस्रूत्र, मनुसंहिता, रामायण, महाभारत इत्यादि सनातन आये जातिके बन्योंमें पुराण भसंग हे । उपपत्ति-निर्णयः ॥ ऋचः सामानि छंदाछ॑सि 14 *. ... ' च्छिटा जरि से दिवि देवा / 2 २४




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