आधुनिक रसायन | Adhunik Rasayan
लेखक :
एन.. के. श्रीमाली - N. K. Srimali,
एम. के. गुप्ता - M. K. Gupta,
डॉ. एम. पी. भटनागर - Dr. M. P. Bhatanagar,
डॉ. पी. टी. भटनागर - Dr. P. T. Bhatanagar
एम. के. गुप्ता - M. K. Gupta,
डॉ. एम. पी. भटनागर - Dr. M. P. Bhatanagar,
डॉ. पी. टी. भटनागर - Dr. P. T. Bhatanagar
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.66 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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एन.. के. श्रीमाली - N. K. Srimali
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एम. के. गुप्ता - M. K. Gupta
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डॉ. एम. पी. भटनागर - Dr. M. P. Bhatanagar
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डॉ. पी. टी. भटनागर - Dr. P. T. Bhatanagar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(से) कई यस्तुए एस से अधिक सामद्यों से दनी होती हैं । उदाहरण के लिए, पेंसिप, जिसमें
सुम लिखते हो, सदी व सीने में बनाई जाती है, पाउस्टेन पैत बनाने मे प्तैरिटक,
पीस या सोहे था उपयोग दिया जाता है ।
ददार्प :
अपने निरीशण द्वारा हम सब यह निप्तर्ष निदात सबते हैं कि भिप्नभिप्न वस्तुए एक या अनेक
सामप्रियों से दनती हैं । इन साम दियो वो हम पदा् (50७50200) बहेंगे।
विभिन्न पदार्थों को उनती अपनी विशेषताओं द्वारा पहचाना जाता है। अलग-अलग पदार्थों से
नी होने दे सर्निरिक्ति हमारे चारो खोर पाई जाने दाली वम्तुए आकार हदा रुप में भी भिन्न होती
हैं। यद्यपि, पदायों और उनमे धनी वस्तुओं में विभिन्नताए होती हैं लेविन सभी वस्तुओ में दो समान
विनेषताएं मदध्य होती हैं ।
1. वे स्थान घे रती हैं ।
2 सब में गहति होतो है ।
उपपु्ति वर्णन से अब हम इम निप्तर्ष पर पहुंचते है कि राव पदार्थ और वस्तुए किसी ऐसी
सामग्री से बनी हैं जो स्पान पे रती है मौर रहति युक्त है । इसे ही हम द्रव्य कहते हैं ।
मव प्रवार के पदार्थ दृव्य के हो अनेकों रूप हैं। ये राभी वस्तुए इन्ही पदार्थों के योग से
बनी है ।
1.3 इृष्प की सरचना
द्रव्य से बने पदार्थों और वरतुओ के अनेक रूप होते हैं और उनके गुणों मे प रिवर्तन हो सकता
है। इस प्रदार के परिवततन प्रति या मनु्य, दोनो ही कर सकते हैं । हम कोयले को जला सकते हैं
जिससे राय प्राप्त होती है। राय के गूण कोयले से भिन्न हैं । अत' यह प्रश्न उठता है कि पदार्थों के
गुण भिश्न बदों होते हैं? इस प्रवार के प्रश्न प्रारम से हो मनुष्य के सामने आए। इसके उत्तर प्राप्त
बरने की विधियां, उत्तर मौर उनसे प्राप्त ज्ञान का आदान-प्रदान, विचारको की विचारधारा, उनके
देश की सरकति और समय के अनुमार बदलते रहे।
प्राचीन काल में वर्षा, शूफा न, बाग, संक्रामक रोगों जैसी घटनाओ से सब घित ज्ञान प्राकृतिक
कारणों से साधा रण प्रेक्षण पर ही आधारित होता था । ऐसी घटनातो का कारण देवी-देवताओ, भूत-
प्रेतो, जादू और ग्रहों, आदि का प्रभाद समझा जाता था । यद्यपि उन दिनो भी बुनने, रगते, दवाईयो,
प्रसाघन-सामग्री, तावा, सोना, चादी, लोहा, सीसा, आदि घातुओ को साफ करते की विद्या और
कौशल का विकास हों चुका था भौर इनमें रसायन का उपयोग भी होता था, फिर भी रसायन के
शान और अध्ययन पर रहस्य, अन्धदि श्वास तथा पिता से पुत्न तर्क ही को भावनाओं का आवरण पढ़ा
हुआ था ।
यूरोप मे ईसा के लगमग 1500 दर्प वाद तक रसायन (पदार्थों के गुणो और उनमे होने वाले
रस ६-2: दरार व-कारापर सर वर्क बियर उ रे उस उसकसनअावथाक-काा/ सत्र:
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