जिन्दा मुर्दे | Jinda Murde
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.02 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४. जारज पंचम की नाक
चिहार की तरफ चला । विहार होता हुग्रा उत्तर प्रदेश की ग्रोर भागा
चन्द्रदेखर श्राज़ाद, विस्मिल, मोती लाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय की
लाटों के पास गया****** घबराहट में मद्रास भी पहुंचा, सत्यमूर्ति री दी
देखा, ग्रौर मंसुर केरल श्रादि सभी प्रदेशों का दौरा करता हु प्रा
पहुंचा --लाला लाजपतराय श्रौर भगतसिंह की लाटों से भी सारमी
हुम्रा । श्राखिर दिल्ली पहुंचा श्रौर श्रपनी मुश्किल वयान की- पु
हिन्दुस्तान की मूर्तियों की परिक्रमा कर श्राया । सवकी ताकों कार्गी
लिया--पर जार्ज पंचम की इस नाक से सब बड़ी निकलीं 1 .
सुनकर सब हताश हो गए श्रौर भुंकलाने लगे । मूर्तिकार ने ढाई
बंधाते हुए भ्रागे कहा. “सुना था कि विहार सेक्रेटेरियट के सामने मी
वयालीस में दाद्दीद होनेवाले तीन वच्चों की मूर्तियां स्थापित हैं”
शायद वच्चों की नाक ही फिट बैठ जाए, यह सोचकर वहां भी पहुंची
पर-*****उन तीनों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं ! श्रब वर्ताई
मैं क्या करूं ?
गैर राजधानी में सब तैयारियां थीं । जाज॑ पंचम की ला ही
मल-मलकर नहलाया गया था । रोगन लगाया गया था । सब कुछ दी
सिफं नाक नहीं थी !
वात फिर बड़े हुक्कामों तक पहुंची । बड़ी खलबली मची -र्गर्र
जाज॑ पंचम के नाक न लग पाई, तो फिर रानी का स्वागर्ते करने वी
मतलब ? यह तो अपनी नाक कटानेवाली वात हुई |
लेकिन मूर्तिकार पैसे से लाचार था****** यानी द्वार माननेवार्ती
कलाकार नहीं था । एक हैरतश्रंगेज खयाल उसके दिमाग में कौंघां और
उसने पहली झा्त दुहराई । जिस कमरे में कमेटी बैठी हुई थी, उसी
दरवाज़े फिर वंद हुए भ्रौर मूतिकार ने श्रपनी नई योजना पेश की
_चूंकि नाक लगना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि साली
User Reviews
No Reviews | Add Yours...