क्षण भर की दुल्हन | Chhan Bhar Ki Dulhan

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Book Image : क्षण भर की दुल्हन - Chhan Bhar Ki Dulhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहा नहीं ; उसकी गोदेमें चिपक गया और उसके आँसु सहन धारा में प्रवाहित होने ठगे । युग-युगका दुख बहनें लगा । तब वे सच्चे मौन्चेटे थे | सुशीछाने डरते-इरते पूछा, 'तुम उनको, “काका को गैर समभते हो ? साफ कही !* नरेर्दरने सोचा; कहा, 'नहीं' ।' सुशीलाने पूछा, 'नहीं न' ! ओर उसका मुंह नरेन्द्रके मनमें समाया हुआ था सुशीछाने रोते हुए कहा, तुम कभी उनको तकलीफ मत देना में ।' नरेन्द्रने कह, “नहीं, माँ ।' सुशोीला स्थिर हो गमी । जाने किस हवासे मेघ आकाशसें भाग गये 1 बह तीन्न हो चोली, 'तो में अपवित्र कैसे हुई '' नरेन्द्रके सामने बे सब लड़के, दूसरे लीग आने लगे, जो उसे इस तरह छेड़ते हैं। उसने बस्त होकर कहा “लीग कहते हैं।' सुशीला मौर भी अधिक तोप्र हो गयी । वोछी, 'तो तुम उनसे जाकर क्यो नहीं कहते, बुछन्द आवाजें कि मेरी माँ ऐसी नहीं है!” मरेन्द्रने कहा, 'वे मुके छेडते हैं, सुके तंग करते हैं, मैं स्कूल नहीं जाऊेगा।' “तुम बुजदिल हो!” और यह शब्द नरेन्द्रके हृदयमें तीदण पत्थरके समान जा लगा । बहू बच्चा तो था लेकिन तिलमिला उठा 1 उसे भुला नहीं । अमूत्य निधिकी भाँति उस घावके सत्यकों उसने थिपां रा । मश्ग कि




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