आदी और अन्त | Aadei Aur Anth
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.94 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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No Information available about राधाकृष्ण प्रसाद - Radhakrishna Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झादि और झन्त ] श्घ्र
उसने खोला, एक फोटो शारदा के पेरो के पास आरा गिरा । उठा कर जो
उसने देखा, तो देखती रह गई । उस 'सुन्दर योर भव्य चेहरे की श्र
से थ्रॉखें न फेर सकी ।
बहुत देर तक चह कुछ सोचती रही । वह जान गई कि इन्हीं के
लिए बावू जी मिर्जापुर गये थे थर हताश होकर लौटे है ।
शारदा ने 'प्राकारा की शोर देखा । काले-काले बादल लहरा रहे
थे । वे उमड-घुमड कर, दल बॉघ कर दौंडे श्रा रहे थे ।
शारदा ने सोचा--काश ' ये बादल उसे बहा ले जाते ।
शारदा को रु्ाई श्रा रही हे । रेखा श्यौर विरजू स्कूल गये हैं ।
राजू सोया है । पास ही के लोहार का हथोडा तप्त लोहे पर पड रहा
है, फ्रौर उसकी श्रावाज शारदा के कानों से टकरा-टकरा जाती है ।
शारदा को लगता है, मानो यह हथीडा उसके कलेजे पर ही पड रहा
है--घनू . घन ..घन् .
द्राज पडोस की सरस्वती भी वातें करने नहीं राई । छुनने के काम
सें भी जी नहीं लगा ।
फोटो को हाथ में रख कर चह निर्निमेप दृष्टि से देखती रही । देखती
रही और '्रॉंसू निकलते रहे 1
श्रॉचल से '्रॉसू पोछुकर शारदा ने सोचा--'छि , में क्यो रो रही
हूं भला ? यह कितनी लज्जा की वात है । नहीं, मे नहीं रोऊँगी ।'
प्यॉसू पोछ कर चह राजू के पास था खडी हुई । देखकर बड़ी ममता
प्राई । भोले भाई का निर्दोष सुख चडा प्यारा लगा । छोटे श्रोठ फडफडा
रहे थे, उन पर मुस्कान की एक हलकी छाया थी ।
शारदा झुकी शोर प्यार से थ्रपने कपोल राजू के कहे चच्त स्थल में
छिपा गुनयुनाई--''सैय्या सेरे !””
बच्चा, इस '्नाहूत स्नेह से नौद् खोकर रोने लगा ।
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