आदी और अन्त | Aadei Aur Anth

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Aadei Aur Anth by राधाकृष्ण प्रसाद - Radhakrishna Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झादि और झन्त ] श्घ्र उसने खोला, एक फोटो शारदा के पेरो के पास आरा गिरा । उठा कर जो उसने देखा, तो देखती रह गई । उस 'सुन्दर योर भव्य चेहरे की श्र से थ्रॉखें न फेर सकी । बहुत देर तक चह कुछ सोचती रही । वह जान गई कि इन्हीं के लिए बावू जी मिर्जापुर गये थे थर हताश होकर लौटे है । शारदा ने 'प्राकारा की शोर देखा । काले-काले बादल लहरा रहे थे । वे उमड-घुमड कर, दल बॉघ कर दौंडे श्रा रहे थे । शारदा ने सोचा--काश ' ये बादल उसे बहा ले जाते । शारदा को रु्ाई श्रा रही हे । रेखा श्यौर विरजू स्कूल गये हैं । राजू सोया है । पास ही के लोहार का हथोडा तप्त लोहे पर पड रहा है, फ्रौर उसकी श्रावाज शारदा के कानों से टकरा-टकरा जाती है । शारदा को लगता है, मानो यह हथीडा उसके कलेजे पर ही पड रहा है--घनू . घन ..घन्‌ . द्राज पडोस की सरस्वती भी वातें करने नहीं राई । छुनने के काम सें भी जी नहीं लगा । फोटो को हाथ में रख कर चह निर्निमेप दृष्टि से देखती रही । देखती रही और '्रॉंसू निकलते रहे 1 श्रॉचल से '्रॉसू पोछुकर शारदा ने सोचा--'छि , में क्यो रो रही हूं भला ? यह कितनी लज्जा की वात है । नहीं, मे नहीं रोऊँगी ।' प्यॉसू पोछ कर चह राजू के पास था खडी हुई । देखकर बड़ी ममता प्राई । भोले भाई का निर्दोष सुख चडा प्यारा लगा । छोटे श्रोठ फडफडा रहे थे, उन पर मुस्कान की एक हलकी छाया थी । शारदा झुकी शोर प्यार से थ्रपने कपोल राजू के कहे चच्त स्थल में छिपा गुनयुनाई--''सैय्या सेरे !”” बच्चा, इस '्नाहूत स्नेह से नौद्‌ खोकर रोने लगा ।




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