चिकित्सा - चन्द्रोदय भाग 7 | Chikitsa - Chandrodaya vol - 7

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Chikitsa - Chandrodaya  vol - 7  by हरिदास - Haridas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. ] मगर जो रोगके रोकनेकी विधियाँ जानता होगा, वद्दी रोगको रोक सकेगा, अत: प्रत्येक मज्ुप्यकों मायुर्वेद पढ़ना भर यैद्य चनना जरूरी है । डाकूर गन मद्दोदयने वहुत ही ठीक कहा (0 ५िठ अदा 0 डपठपत फठ तट 8. पारा, 0. का . चेप्ॉाति एल चाह (७० बपितेकू ५घिए 1875 एव 1१5 ५0 ६0 0. ५15 बाप, 15 510” तन्दुरुस्तोके उसूल-पए-क़चानीनकी इताअत या फररमाँबर्दारी करना--स्वास्थ्यरध्तासस्वन्थी नियमों भौर विधानों- के मधघीन रहना, हरेक भनुष्यका अपना निजी धर्म, कर्चन्य और फ़्जें होना यादिये ; गर्थात्‌ प्रत्येक मनुप्यका कत्तेंब्य-घर्म है, कि चद स्वास्थ्यरक्षा-सम्चन्घी चिधानोंके मनुसार चले । अतः प्रत्येक मज्ुप्यको कत्त॑ ब्य हैं. कि चहद अपनी खत्ता या दस्तीके नियम और कानूनों को अध्ययन आर मनन करे, उनका पावन्द रहे ; क़दम-क़दम पर पर उनके मुताबिक़ चले ; उनके ग्विलाफ कोई काम न करे । इस चविपयसे अनजान रहना या इस पर ध्यान न देना “गुनाइ और पाप” हैं। मतछवब यद्द हे कि, हर मनुप्यको चाहें चह पुरूप हो या स्त्री स्वाथ्यरध्षा -सम्बन्धी नियमों का. पावन्द॒ रहना चाहिये। उन नियमों के विरूद्ध कोई भी काम न करना चाहिये । , पर जो स्वारुथ्यरध्ताकें नियमों का जानेगा, वहीं उनका पावन्द रहेगा, उनके गलुसार चलेगा । जा उन्हें ज्ञानता दी नहीं, चद्द उनके अनुसार केसे चल सकेगा? इसोसे डाक्टर सादहव मज़क़ूर फरमातें हैं, कि जिस तरह उन नियमोंका मानना प्रत्येक मदुप्यका धर्म था फ़ें है ; उसो तरह जिस शाख्रमें वे लिखे हैं उसका पढ़ना, समभकना भोर तद्चुसार चलना सभी प्रत्येक मजुप्यका क्तेव्य हैं । उस शास्त्रको न पढ़ना या उस तरफ ध्यान न देना पाप है कहिये पाठक, अब तो आँखें खुली । हमारे ऋषि-सुनि दी आयुर्वेटका अध्ययन करना




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