हीरक प्रवचन | Heerak Pravachan [ Vol. - 7 ]

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Heerak Pravachan [ Vol. - 7 ] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ]. पढ़ने से तपस्या करने की रुचि पैदा हो । दूसरी क्षमा करने की भावना जागृत हो । तीसरी झदट्दिसा, प्राखि मात्र पर करूणा करना विश्व के समसत- जीवों को झपने जैसा समकना । 'श्ीर उनके . सुख दुःख में भागीदार बनना | सत्साहित्य एक प्रकाश स्थम्म है। मानवों को अन्तर ज्योति का दर्शन कराता है। 'और भूले भटकों को मागें पर लाता है । जिससे गंतव्य स्थान पेर पहुंचा कर 'झात्म शान्ति देता है । ाप के द्वेथ में हीरक प्रवचन का सातवां भाग है । इसमें रहे हुए प्रबचन बहुत सुन्दर, झात्म शान्ति दिलाने बाले, मोच्ष- मागे के पथ प्रदर्शेक है। इसे इस निसंकोच सत्य सादित्य कह सकते हैं ! क्योंकि इन प्रबचनों में इन विषयों पर-- सुपात्र-सेवा सन की जलन... तपोमदिसा लि चिरालस्ब के झालम्ब भावना भवनाशिली संघर द्वार बन्घधन-विजय म् दिलका मलहस शल्य-चिरसन विकीन कल्याण की कसौटी मुक्ति की वरमाला स्सार बहुत 'ाक्षक एवं रोचक रूप से विशद्‌ विवेचन किया है । इन श्रवचनों के प्रवचनकार शाख््र विशारद पंडित मुस्ति श्री ीरालालजी म० हैं। 'झापने बाल्यकाल से ही शाचार्ये श्री खूबचन्दजी म० की सेवा में रद्द कर शास्रों का धष्ययन किया है |




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