खून की होली | Khun Ki Holi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.78 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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घ्ानन्दी --( श्रपने आांसु्रों को रोकतो हुईं गदू गढू कंठ से ) पिताजी !
वे नहीं आयेंगे । वे तुम सबसे रूठ गये हैं । ठम लोग उन्हें
बढ़ा तँँग करते हो । वे नहीं श्रायेंगे कभी । ( फूट फूट कर
रोने लगती है । )
' झ्रशोक --नहीं श्रायेंगे कमी १ तो हमारी होली ?
घ्ानन्दी--( सम्भल कर ) तू श्रभी खूत की होली गा रहा था न
अशोक फिर गातो एक बार |
घ्राशोक --गाउँ-( याद करता हुआ )
श्र
सुखी स्वाधोन ढ॑ जो
उन्हीं को रंग की होली
गुलामों के लिये होली
होली
सदा हूं खून की होली
श्यानन्दी --वुम्दारे पिताजी ऐसी ही खून की दोली खेलेंगे आज । नुम
रंग की होली दी खेल लो |
श्रघ्नोक --ना; माँ हम लोग तो पिताजी की तरह खून की ही होली
खेलेंगे
घरूण - केसे खेलते हैं खून की होली ?
घ्यावन्दी--( श्ररुण के चपत लगाकर) बड़े आये खुन की होली खेलने
वाले तुम झ्रभी नन्दे बच्चे हो वेया | खूत की होली तो
बड़े खेलते हैं । तुम्हारा खुन होली खेलने के लिये नहीं हैं
मेरे लाल । ( और अशोक को व्विपस लेती है ।)
( सुनी और चुन्नी लड़ती हुई श्राती हैं )
मुन्नी --ऊ! ऊ! ऊ! मेली मोतल ( माँ से लिपटकर ) माँ चुन्नी
ने नेली मातल छोन लौ ।
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