देवसि - राइ प्रतिक्रमण | Devasi-rai Pratikraman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.6 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू जुः
अपने विन्नों की राम-कहानी सुनाना, कागज और ' स्याही
को ख़राब करना तथा समय को बरबाद करना है । मुझे तो
इसी में ख़ग्नी है कि चाहे. देरी से या ज्दी से, पर अब, यह
पस्तक पाठकों के सामने उपस्थित की जाती है । उक्त बाय
साहब की इच्छा के अजनसार, जहाँ तक हो सका है, इस पुस्तक
के बाह्य आवरण अर्थात् कागज, छपाई, स्याही, जित्द आदि
की चारुता के लिये प्रयत्न किया गया है । सर्च में भी किसी
प्रकार की कोताही नहीं की गई है । यहाँ तक कि पाले छपे हुए
दो फर्म, कुछ कम पसन्द आने के कारण रद कर दिये गये ।
तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह पुस्तक सवाडगपूर्ण तथा
घाटियों से बिल्कुल मुक्त है । कहा इतना ही. जा सकता है कि
त्राटियों को दूर करने की ओर यथासंभव ध्यान दिया गया है ।
प्रत्येक बात का पूर्णता क्रमन्नः होती है । इस लिये आशा है कि
जो जो त्राथियाँ रह गई होंगी, वे वहुधा अगले सस्करण में दूर
हो जायेगी ।
साहित्य-प्रकाशन का कार्य काठिन है । इस में विद्वानू तथा
श्रीमानः सब की सदत चाहिए । यह “'मण्डल' पारमार्थिक संस्था
है । इस लिये वह सर्मी धर्म-रुचि तथा साहित्य-प्रेमी विद्वानों व
श्रीमानों से रवेदन 'करता हे कि वे उस के साहित्य-प्रकाश्न में
यथासंभव सहयोग देते रहें । और धर्म के साथ-साथ अपने नाम
को जिरस्थायी करें । मन्त्री--
. श्रीआत्पानन्द-जैन-पुस्तक-प्रचारक-मण्डल,
रोशनमुहल्ला: झागरा ।
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