सफलता एक सफ़र है मंजिल नही | Safalta Ek Safar Hai Manzil Nhi

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Safalta Ek Safar Hai Manzil Nhi  by राकेश कुमार - Rakesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिकता के साथ समकालीनता का प्रश्न उठाना स्वाभाविक ही है। आधुनिकता को _ समकालीनता का पर्याय मानना सर्वथा भ्रामक है। आधुनिकता समकालीनतां से नितान्त अलण ...... ऊर्थ रखती है *समकालीनता” अंग्रेजी शब्द (:0ालाए0णघा५ को कहते हैं जिसका सम्बन्ध ..... समय सामयिकता से है और आधुनिकता” को अंग्रेजी में ५062४ कहते हैं जिसका सम्बन्ध प्रवृत्ति या शैली से है। *आधुनिक एक ऐसा शब्द है जो आधुनिक जीवन दृष्टि के निर्वाह में आधुनिक अस्तित्ववाद का निर्वाह करता है। समसामयिकता या समकालीन से हमारा आशय देशकाल के साध-साथ उस क्षण णहरी तीघव्रानुभूति की ग्राह्मता से है, जो परिस्थिति से उपजती है और बिना किसी पूर्वाग्रह के सावेण औचित्य के साथ व्यक्त होती है समकालीनता आधुनिक ._.: होने का मानदण्ड नहीं है बल्कि यह अधिक कहना उचिंत होणा कि आधुनिकता की सर्जनात्मक . अर्थवत्ता समसामंयिकता के अतिक्रमण करने में है। रचनाकार को देशकाल की समीपता में कालजीवी बनना पड़ता है| यह अर्थ उसकी अपनी घटनाओं और तथ्यों में समकालीन नहीं होता, बल्कि उसकी समकालीनता वर्तमान से उस संवेदनात्मक सम्प्रक्ति में होती है, जो देशकाल और प्रकृति के दिवाकाल से आबद्ध बनी रहती है। यही कारण है कि,समकालीनता और आधुनिकता में भाव :.'..बोधीय अन्तर आ जाता है। ः महादेवी वर्मा ने समसामयिकता का जूझता हुआ प्रश्न स्पष्ट किया णया है- 'समसामयिक | और शाश्वत परस्पर विरोधी परिस्थितियां नहीं हैं, उनमें 'है* और होना चाहिए का अन्तर भाव है... | _ अनेक समसामयिक अतीत बनकर ही शाश्वत का सृजन करते हैं । यह एक इतिकदृत्त है और दूसरा ..... ऊनेक इतिवृत्तों के संघात से निर्मित भावात्मक लक्ष्य है । कोई भी व्यापक लक्ष्य स्वयं तक पहुंचाने _ वाले साधनों का विरोध नहीं करता और साधनों का अस्तित्व परिस्थितियों में रहता है!” आधुनिकतावादी संवेदनशील लेखक अतीत से जुड़कर वर्तमान में रहकर भविष्य से जुड़ा रहता है। समसामयिक लेखक केवल वर्तमान में जीता है । आधुनिकता के लिए संवेदनात्मक दृष्टि में बौद्धिक पकड़ का समावेश अपरिहार्य है आत्मबोध का कवि परम्परा को स्वीकार करते हुए भी उसे अस्वीकार करता है | यह भौतिक जणत की सीमाओं से अपने को असहनीय मानता है। _ डॉ. बच्चन सिंह ने संवेदना के धरातल पर आज के लेखकीय दृष्टि को स्वीकारते हुए लिखा है- आधुनिक बोध का कवि बन्धनों के प्रति तीखी आलोचनात्मक नजर रखता है | उनकीं कड़वी तीखी अनुभूतियों से जुजरता है, उन्हें भोणता है, झेलता है और टकराहटों से से काव्य में विशिष्ट ऊर्जा . दिखायी देती है जो बराबर मूल्यणत होती है # आधुनिकता समकालीनता को अपने रूप में ग्रहण .. करती है किन्तु अपनी रचनात्मकता में वह समसामयिकता के उन संदर््ष को नकार देती जो _ मानव के सांस्कृतिकता के विकास को अवरुद्ध करते हैं। समसामायिक होना व्यक्ति में जागरूक _ होने का भ्रम भले ही उत्पन्न कर दे, किन्तु अपने चिन्तन और सृजन को अर्थ देने के लिए उसे _ समसामायिक तथ्यों और घटनाओं को अपनी संवेदना की आंच में पिघलना ही होणा | ५. नई कविंता के प्रतिमान पृष्ठ 263 (लक्ष्मीकान्त वर्मा) हर ... 3: समकालीन साहित्य और आलोचना की चुनौती, पृष्ठ 55 2. साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध पृष्ठ 28




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