विस्मृत यात्री | Vismrit Yatri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
155.52 MB
कुल पष्ठ :
405
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देशादन श्रादमीकी बहुत सी श्रान्तियोंको दूर कर देता है,इसीलिये कूपमंड्रकताको :
.. अज्ञानका पर्याय माना जाता है।
...... गाँव से बहुत दूर नहीं थे । उन हिमान्छादित शिखरोंको हम देखते ईक जिनके.
... दाहिने-बाँवेसे ये दोनों नदियाँ निकलती हैं। गाँवके एक शरसे सुवास्तुमें
.. जानेवाली नदी बहती थी, जिसकी थारा छोटे-बड़े चड्टानोंके ऊपर उद्ललती
. रात-दिन घर् घर घर्-बर् स्वरमें कोई गम्भीर गीत गाया करती थी पत्थरॉपर
|... ..... उछलता. पानी. दूधकी तरह सफेद दिखाई पड़ता था. ।. बचपनमें
.. मैं समझता था; यह सचमुच ही दूध है । लेकिन हाथमें उठानेपर वह पानी हो.
कं _ जाता था। कुछ नीचे, जहाँ हम गर्मियों में नहानेके लिये जाते थे, वहाँ
पक थी पानीका एक. कुएड बन गया. था, . जिसका रण हल्का नीला या गहरे सह ः गे
_.. हरेरंगका था | गाँवसे ऊपर की ओरका सारा पहाड़ देवदार वुक्षोंसे दँका था ।
........ जाड़ोंके दिनोंमें जब गाँवके श्रौर लोगोंके साथ हमारा परिवार मी घरकों बन्द बी
कर झपने पशु-पाशियों को ले नीचेंकी श्र मस्थान करता, तो मुझे गाँव कक
..... छोड़नेका बड़ा खेद होता।कंभी-कभी|माँके साथ. ननिहालमें मैंने जाड़े बिताये | की,
........ वहाँ तीन-तीन हाथ मोटी सफेद बफचारों ओर भड़ जाती । उसवक्त हम लड़के बर्फके
........ कितने ही प्रकार के खेल खेला करते | मैं पूछता था, कि हमारा परिवार मी;
:......' जाड़ोंमें अपने ही गाँवमें क्यों नहीं रहता १ माँ कहती--हमारे यहाँ श्रौर भी
सके
...... श्रधिक बर्फ पड़ती है, श्र कमी-कभी बर्फके सैलाब रा जानेका डर रहता है, .... '
धक्के से . घरके घर चूर-चूर हो जाते हैं । फिर यहाँ जाड़े भर एक
....... तिनका या घास पशुत्रोंके लिये नहीं मिल सकता; और झ्रपने जमा किये हुये घास- रे
........ भूसेसे हम,उनको दो महीने से अधिक नहीं पाल सकते | उस वक्त मेरी बाल-कल्पना
...... कहती थी, कि यदि मीषणा हिंमवर्ीमें भी सदा हरे रहनेवाले देवदारके पत्ते...
हारे पुओंके लिये बारी तर चारेका काम देते, तो कितना श्रच्छा होता...
. तब तो हम जाड़ोमें भी आपने गाँवमें ही रहते ।
अधिक से था | कुनार श्र सुवास्तु जैसी विशाल नदियों के उद्गम हमारे.
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