गांधी साहित्य गीता माता 3 | Gandhi Sahitya Geeta Mata 3

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Gandhi Sahitya Geeta Mata  3 by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+. मनवालें ढुनियाकी गड़बड़में पड़े रहते हें और देख ही नहीं सकते । और ऐसी गड़बड़वालोंको जो स्पष्ट लगता है वह समाधिस्थ योगीकों स्पष्टरूपसे मछिन लगता है और वह उधर नजरतक नहीं डालता | '..... ऐसे योगीकी तो ऐसी स्थिति होती है कि नदी-नालों - दर का पानी जैसे समुद्रमें समा जाता है वैसे विषयमात्र के * रत समुद्रूप योगीमें समा जाते हैं। और ऐसा है ८ मनुष्य समुद्रको भांति हमेशा शांत रहता है । इससे | जो मनुष्य सब कामनाएं तजकर, निरहंकार होकर, ममता छोड़कर, तटस्थरूपसे बरतता है, वह शांति पाता हे । यह ईद्वर-प्राप्तिकी स्थिति हैं और ऐसी स्थिति जिसकी मृत्युतक टिकती है वह मोक्ष पाता है । झाफ दिखाई देता है वहां अस्थिर _ तीसरा अध्याय रा सोमप्रभात पर २४-११-३० देन स्थितप्रज्ञके लक्षण सुनकर अर्जुनको ऐसा लगा * ..../... कि मनुष्यकों शांत होकर बैठ रहना चाहिए । उसके ही लक्षणोंमें कर्मका तो नामतक भी उसने नहीं सुना ।




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