विशाल भारत | Vishal Bharat

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Vishal Bharat by बनारसीदास चतुर्वेदी - Banaarseedas Chaturvediरामानन्द चट्टोपाध्याय - Ramanand Chttopadhyay

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बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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रामानन्द चट्टोपाध्याय - Ramanand Chttopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अर रखना अमीष्ट हो, तो इसका कुल खर्च ब्रिटिश सरकारकों ही अपने उपर लेघा.... जनवरी, १९२३४ ] शक तो भारतका सैनिक व्यय आधा कम हो सकता है । प्रश्न यह है कि इतनी बड़ी सेना भारतमें क्यों रखी जाती है ? क्या. अंगरेज्ॉंके शासनकालमें. कभी भी भारतपर वाद्य . शत्रुके आक्रमणकी आशंका हुई है ! आन्तरिक शान्तिके लिए तो मुल्की और फौजी पुलिस ही काफ़ी है । इंग्लैग्डमें अंगरेज़ सैनिकॉको नियुक्त करने तथा उन्हें शिक्षा देनेकी व्यवस्था भारतके लिए किसी प्रकार भी लामजनक नहीं कहीं जा सकती । यह व्यवस्था तो सिफ॑ इसलिए की गईं है, जिससे ब्रिटिश साम्राज्यके स्वार्थोकी रक्षा हो । मिस्र, चीन और दक्षिण-अफ़िकाके युद्धमें और गत महायुद्धमें जो भारतसे सेना भेजी गईं थी, उसकां क्या उद्देश्य था ? भारतके पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्तकी रक्षाके लिए जो सैनिक व्यय किया जाता है, उसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यकी स्थिति और वाणिज्यकी रक्षा है ।. साम्राज्यकी परराषट्र-नीति, प्रवीय देशोंमें साम्राज्यकी सत्ता तथा वाणिज्यकी हित-दृष्टिसि ही भारतमें इतनी बड़ी फौज रखी जाती है । इससे ब्रिटिश साम्राज्यका स्वार्थसाधन होता है । सन १९१४ तक भारतमें जितना सैनिक _ व्यय होता था, उसकी अपेक्षा इस समय दुगुना होता है! क्यों? क्या भारतके हितके लिए! जिस फोजकों रखनेमें गरीब देशवासियोंको प्रतिवर्ष ५४ करोड़ ख़चे करना पड़े और जिससे साम्राज्यका स्वार्थ- साधन हो, वह सिफ॑ दो करोड़ रुपया खर्च करे, इससे बढ़कर अन्याय और क्या हो सकता है ? पराधीन भारत बहुत दिनोंसे इस असह्य कर-भाएको वहन करता चला आ रहा है। इसके कारण ही शिक्षा; स्वास्थ्य, कृषि-सुधार भादिकी कितनी ही योजनाएँ कार्यान्वित नहीं हो सकी हैं । इसलिए यदि ब्रिटिश सरकारको साम्राज्यकी .. रक्षाके ' लिए भारतमें गोरी फौज स्यायोचित है को ् सम्पादकीय विचार ७ व्यायाममें साम्प्रदायिकता राजस्थान-प्रान्तीय हिन्दू-सभाकी सातर्वी वार्षिक रिपोर्ट हमारे सामने है। उसका .एक अंश यहाँ उद्धृत किया जाता है-- कुश्तियाँ, दंगल तथा हिन्दू टूर्नामन्ट ““हिन्दू-सभाकी स्थापनासे पूव . इस प्रान्तमें कुश्टतियोंका शौक़ नहीं था ।. व्यायाम-कसरत करना, कुश्ती लड़ना, लुचे-गुंडोंका काम बताया जाता था; और कुश्ती लड़नेवालोंको लोग इज्जञतकी निगाहसे नहीं देखते थे |. प्रान्तिक सभाने व्यायामका महत्त्व जनताको बताया, आनेवाली सन्तानोंको «बलवान; शक्तिवान बनानेका उपदेश दिलाया ।. सभाकी ओरसे कई स्थानोंपर अखाड़े स्थापित किये गये, उस्तादोंकी पंचायतें कायम की गईं, उनके द्वारा दंगल कराये गये । विजेताओंको इनाम दिये गये, जिससे जनतामें व्यायामके प्रति प्रेम हो गया ।. और वह प्रसन्नताके साथ हिन्दू- समाके अखाड़ोंमें योग देने लगी । फलस्वरूप अकेले अजमेरमें इस समय पहलवानोंके चौबीस अखाड़े हिन्दू- समाकी फहरिस्तमें दजे हैं, इसके अलावा घरू: अखाड़े अलग हैं ।. इस तरह राजपूतानेमें हज़ारों अखाड़े चल रहे हैं, जिनमें व्यायाम आदिका कार्य हो रहा है | सदाकी भाँति इस वर्ष भी हिन्दू-सभाकी ओरसे टूर्नामेन्ट कराया गया और लकड़ी आदिके अखाड़ोंको बुलवाकर उनको पारितोषिक दिये गये । हिन्दू ट्र्नामिन्ट तथा हिन्दू-दंगल सदाकी भाँति रोलवालोंकी हिन्दू-धर्मशाला में होते रहे हैं ।?? इस वाक्यसे यह सुप्टतया प्रकट है कि राजस्थान- प्रान्तीय हिन्दू-सभा व्यायाममें भी साम्प्रदायिक ढंगसे काम लेना पसन्द करती है । उसके “हिन्दू टूर्नामेन्ट' और हिन्दू दंगल” “हिन्दू धर्मशाला” में होते हैं | किसीको इस विषयमें . आशंका न हो, इसलिए परिशि नं० ४ में अजमेरके अखाड़ोंके २६ गुरुओकी नामांवली भी प्रकाशित की गई है । इनमें श्रीयुत नारायणजीसे लेकर श्रीयुत पुरुषोत्तमजी तक सभी हिन्दू हैं । लगी पैक दि सियल पैसदत्त कं “शी पैक दीं काल री दी चिपक कद का रे नेक मेक निकासी लि, लत, विफल दर निकल निका, तर पक, पिच, सदमे”, पिशिप ि,




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