वीरों की कहानियाँ | Veero Ki Kahaniya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.7 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विलुप्त मंजूषा ।
एफ १ईईडना
झ्दाराज शिवाजी सूरत नगरको छटकर और छटके सामानको
गाड़ियोंमें भरकर, अपने साथियों सहित रायगढ़ दुर्गकी ओर जां
रहे हैं । हम सब इंग्लिश फेक्टरीके लोगोंने बड़े यत्नसे अपने घन और
प्राणोंकी रक्षा की । हम प्रेसीडेंट सर जॉजें ऑक्सडनको--जिन्होंने
स्वैढीके जहाजोंपरसे सैनिकों और सरदारोंको बुलाकर इस महान् संक-
ठके संमयमें हम लोगोंकी रक्षा की-घन्यवाद दिये बिना नहीं .रह सकते
हैं। हमारी फैक्टरीके कई आदमी मारे गये और बहुतेरा सामान भी
छुटेरोंके हाथ ढगा । बचे हुए लोगोंमें मेरा एक चाचा भी था जो कि
अपनी मंजूषा खो जानेके दुःखसे बहुत दुखी हो रहा. था । उस मंजू:
पाको वह अपने प्राणोंसे भी अधिक मूल्यवान् और प्रिय समझता था |
क्योंकि उस मंजूषामें उसकी मृत प्रियपत्नीकी एक जड़ाऊ मोहर रक््खी
हुई थी । .उस. मोहरमें सच्चे हीरे और माणिक जड़े हुए थे। इस मोह-
रके सिवा एक अगोसनी डाई ( इंसाका प्राणदण्डके समयका चित्र ) भी
रक््खी थी, .जों. उसे राजा मारटरने राजसेवाके पुरस्कारमें अपने हाथोंसे
मेठ दी थी । इस मंजूषाके सिवा और भी कई बहुमूल्य पदार्थ जो
वह भागते समय अपनी कोठरीमें छोड़ आया था छुंटेरोंके हाथ लगे थे ।
परन्तु उसे उनके जानेका कुछ भी रंज न था । शान्ति होनेपर
जब हमने अपनी कोठरियोंको जांकर देखा तो ऊँची ऊँची दीवारों के
सिवा उनमें और कुछ भी दोष न था। बहुत खोज की, पर मंजूबाका
पता न चला | अब इसमें कुछ भी संशय न रहा कि वह शिवाजीकी
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