वीरों की कहानियाँ | Veero Ki Kahaniya

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Veero Ki Kahaniya by कुंवर कन्हैयाजू - Kunvar Kanhaiyaju

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विलुप्त मंजूषा । एफ १ईईडना झ्दाराज शिवाजी सूरत नगरको छटकर और छटके सामानको गाड़ियोंमें भरकर, अपने साथियों सहित रायगढ़ दुर्गकी ओर जां रहे हैं । हम सब इंग्लिश फेक्टरीके लोगोंने बड़े यत्नसे अपने घन और प्राणोंकी रक्षा की । हम प्रेसीडेंट सर जॉजें ऑक्सडनको--जिन्होंने स्वैढीके जहाजोंपरसे सैनिकों और सरदारोंको बुलाकर इस महान्‌ संक- ठके संमयमें हम लोगोंकी रक्षा की-घन्यवाद दिये बिना नहीं .रह सकते हैं। हमारी फैक्टरीके कई आदमी मारे गये और बहुतेरा सामान भी छुटेरोंके हाथ ढगा । बचे हुए लोगोंमें मेरा एक चाचा भी था जो कि अपनी मंजूषा खो जानेके दुःखसे बहुत दुखी हो रहा. था । उस मंजू: पाको वह अपने प्राणोंसे भी अधिक मूल्यवान्‌ और प्रिय समझता था | क्योंकि उस मंजूषामें उसकी मृत प्रियपत्नीकी एक जड़ाऊ मोहर रक्‍्खी हुई थी । .उस. मोहरमें सच्चे हीरे और माणिक जड़े हुए थे। इस मोह- रके सिवा एक अगोसनी डाई ( इंसाका प्राणदण्डके समयका चित्र ) भी रक्‍्खी थी, .जों. उसे राजा मारटरने राजसेवाके पुरस्कारमें अपने हाथोंसे मेठ दी थी । इस मंजूषाके सिवा और भी कई बहुमूल्य पदार्थ जो वह भागते समय अपनी कोठरीमें छोड़ आया था छुंटेरोंके हाथ लगे थे । परन्तु उसे उनके जानेका कुछ भी रंज न था । शान्ति होनेपर जब हमने अपनी कोठरियोंको जांकर देखा तो ऊँची ऊँची दीवारों के सिवा उनमें और कुछ भी दोष न था। बहुत खोज की, पर मंजूबाका पता न चला | अब इसमें कुछ भी संशय न रहा कि वह शिवाजीकी




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