तीसरा सप्तक | Teesra Saptak

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Book Image : तीसरा सप्तक  - Teesra Saptak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जे प्‌ करनेका यह अर्थ नहीं है कि किसी भी दयाब्दका सर्वत्र, सर्वदा सभीके द्वारा ठीक एक ही रूपमें व्यवहार होता है--बलच्कि यह तो तभी होता जब कि वास्तवमें 'एक घीज़का एक हो नाम होता और एक नामकी एक ही चीज़ होती ! प्रत्येक बाब्दका प्रत्येक समर्थ उपयोक्ता उसे नया संस्कार देता है । इसीके द्वारा पुराना दाब्द नया होता है--यहीं उसका कल्प है। इसी प्रकार दाब्द वैयक्तिक प्रयोग' भी होता हैं और प्रेषणका माध्यम भी बना र है, दुरूह भी होता है और बोघगम्य भी, पुराना परिचित भी रहता हैं और स्फतिप्रद अप्रत्याशित भी । नये कविकी उपलब्धि और देनकी कसौटी इसी आधारपर होनी चाहिए । जिन्होंने दाब्दको नया कुछ नहीं दिया है, वे लीक पीटनेवालेसे अधिक कुछ नहीं हे--भले ही जो लीक वह पीट रहे हैं वह अधिक पुरानी न हो । और जिन्होंने उसे नया कुछ देनेके आग्रहमें पुराना बिलकुल मिटा दिया हैं, वें ऐसे देवता हैं जो भवतकों नया रूप दिखानेके लिए अन्तर्धान ही हो गये हैं ! कृतित्वका क्षेत्र इन दोनों सीमा-रेखाआके बोचम है । यह ठीक है कि बीचका क्षेत्र बहुत बड़ा है, और उसमें कोई इस छोरके निकट हो सकता है तो कोई उस छोरके । दुरूहता अपने-आपमें कोई दोष नहीं हैं, न अपने-आपमें इष्ट है। इस विषयकों लेकर झगड़ा करना वैसा ही है जैसा इस चचमिं कि सुराह्दीका मुँह छोटा है या बड़ा, यह न देखना कि उसमें पानी भी हूं या नहीं । दे प्रयोक्ताके सम्मुख दूसरों समस्या सम्प्रष्य वस्तुकी हूं। यह बात कहनेकी आवंश्यकता नहीं होनी चाहिए कि काव्यका विषय और काव्यकी वस्तु ( कंटेंट ) अलग-अलग चीज़ें हैं; पर जान पड़ता है कि इसपर बल देनेकी आवश्यकता प्रतिदिन बढ़ती जाती है 1! यह बिलकुल सम्भव है कि हम काव्यके लिए नयेसे नया विषय चुनें पर वस्तु उसकी पुरानी ही रहे; जैसे तीसरा सच्चक १७




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