शेक्सपियर भाषा | Shakespeare Bhasha (apani Apani Ruchi)

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Shakespeare Bhasha (apani Apani Ruchi) by लाला सीताराम - Lala Sitaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् दोकसपियर भाषा | ज्ञाय-क्या बात है जो मैं उससे इतना बुरा मानता हु ! वह खुशील है-शिक्षा न होने पर भी विद्वान है । पूरा उदार भी है । सब उसको चाहते भी हैं। इसमें भो सन्देद नहीं कि सब लोग उसको मानते हैं । मेरे नौकर तो उसके बहुत ही चाहते हैं-'श्ौर मेरी बुराई करते हैं । पर श्रब पऐसा न होगा। यह पहलघान सखब निपटा देगा--घब मुझे जद्द ही ऐसा उपाय करना चाहिये कि अपने भाई को भड़का दूं और किसी बात की कमी नहीं है--(बाहर जाता है) दूसरा स्थान । राजा के मददल के सामने का मैदान । ( रसलीना और सुदीला आती हैं ) सुशीला--मेरी प्यारी बहिन ! तुम उदास न रहो । हसो बोलो । रखलीना--खुशीला प्यारी ! में केसे प्रसन्न रह--पिता के बनवास का मुझे बड़ा दुःख है-छिन सर भो नहीं भूलता ऐसे समय में तुमको उचित नहीं कि मुझसे हसने बोलने को कहो। खुशीला--प्यारी बहिन ! इससे तो यह सिद्ध होता है कि में जितना तुम को चाहती हूं उतना तुम मुझे नहीं [चाहती -तुम्ददारे पिता ने. मेरे पिता को देश से निकाल दिया होता और मेरा तुम्हारा संग रहता तो में तुम्दारे ही पिता का अपना पिता समझ कर घीति करती--और जो तुम्द्दारा प्रेम सच्चा है तो तुमको सी पेसा दी मानना चाहिये --




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