निबन्ध निकुंज | Nibandh Nikunj

Nibandh Nikunj by शिव प्रसाद अग्रवाल - Shiv Prasad Agrwal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिव प्रसाद अग्रवाल - Shiv Prasad Agrwal

Add Infomation AboutShiv Prasad Agrwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४] 21 2 रे _. [ सूमिका _ कुी-कभी किसी बात को जोरदार बनाने के लिए उसे प्रश्न- वाॉंचक वाक्यों में लिखते हैं अथवा विस्मय-सूचक घाक्य में । जैसे (१) ज्ञान-प्रसार सें किस अकार विदेशी आाषा सोठ-भाषा की अपेक्षा सफल हो सकती है ? (२) कैसे रसणीय; केसे सुद्दावने; केसे सुन्दर श्य हैं ! यदि इस बाक्यों को साधारण रूप में-(१) ज्ञान-प्रसार में विदेशी साषा, साव-साषा की अपेक्षा सफल नहीं हो सकती है, (९) दृश्य रसणीय; सुन्दर ौर सुद्दावने हे-रख दिया जाय सो ये शिधथिल हो जायेंगे । कहीं-कडीं वाक्यांश या वाक्य के आारस्स अथवा अन्त में एक ही शब्द या शब्द-समूह का बार-बार प्रयोग करने से भी साषा में अच्छी शक्ति था जाती है । जेसे--(१) जब सिट्टी से रत्न पद करने वाला सोन तपश्वी किसान भर-पेट सोजन पायेगा, जब उसे शरीर ढकने को वस्त्र मिलेगा; तभी यह देश पुनः अपनी प्राचीन समंद्धि को शप्त करेगा; तभी यह देश पुन: घन- घान्य से अट जायेगा; तभी यह देश पुनः अपनी खोडे हुई लदमी को श्राप्त करेगा । (२) भारतवष को एक राष्ट्र बनाने वाले आप ही हें। भारतवष में जायति करने वाले आप ही हैं। भारतमाता की सूखी नसों सें रक्त का संचार करने वाले आप ही हैं । देश के _ स्त्री; पुरुष, बालक और बृद्ध सबके हृद्य-सम्राद आप ही हैं | निवन्ध का सॉद्य अल्क्लारों के प्रयोग से बढ़ जाता है, पर .. उनकी भरसार अच्छी नहीं । जहाँ जो झलडझ्लार स्वतः विचार-प्रचाह . में आ जायें; उन्हीं को निवन्ध सें स्थान दिया जाय | सिर ख़ुजला- खुजल्लाकर रचना में अलझ्लार विदाना ठोक नहीं है। उपसा, उस्प्रेक्षा, रूपक झाद़ि साइश्यमूलक अलझार भावों को स्पष्टता प्रदान करते _ है । अत! उनका प्रयोग करना चाहिए। किन्तु स्मरण रहे कि उलझारों का प्रयोग करना सरल नहीं वह्दी विद्यार्थी उनका योग करे जिसे उनका ठीक ज्ञान हो । . निबन्ध में मुहावरों तथा लोकोक्तियों का यथा-स्थान प्रयोग . .. झोना चाहिए । इससे उसमें रोचकता झा जाती है । जैसे-''विदेशी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now