मानस - दर्पण | Manas-darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33.08 MB
कुल पष्ठ :
99
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चन्द्रमौलि सुकुल - Chandramauli Sukul
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ई _ मानस-दपंश ।
यायी से विरोध ! एक दूसरे के परम विरोधी शैव झार वैष्णव सा
दुग्ध तार शकंरा की तरह एक में मिला लिये गये हैं
' शशुंकर-प्रिय मम ट्रोही , शिव-द्रोही मम दास |
ते नर करहिं कल्प भरि , घोर नरक महँ वास ।। ””
डर
तुलसीदासजी की इच्छा कोई नया मत स्थापित करने तथा
सेकड़ों चेले मुँड़ने की नहीं थी, किन्तु पक्षपातरहित होकर किसी
देवता में भक्ति करने की थी । इसी लिए यद्यपि लोग पहले उनके
काम में विज्न डालने की श्राकांचा रखते थे, तथापि अन्त में जब उन.
को ज्ञाव हो गया कि रामचरितमानस सब मतों का माननीय
है तो सबने इसका आदर किया । श्र प्रभाव यह पड़ा कि
संस्कृत न जाननेवाले लोग जो भ्रविद्या के कारण . कुमागो' पर
जाते थे ठीक होने लगे; श्रौर मिन्न सिन्न देवताओं के पूजनेवालों
में जा विराघ रदता था वह कम पढ़ने लगा | अब रामचरित-
मानस का इतना प्रचार है कि कया पंडित, कया साधारण मनुष्य,
सभी के पास यह प्रंथ रहता है श्ौर प्रेम-पूवेक पढ़ा जाता है।
दर नास ।
तुलसीदासजी ने झ्रपने अ्रंथ का नाम “*रामचरितमावस' क्यों
रक््खा ? इसका कारण बालकांड के भ्रादि में सविस्तर वर्शित है ।
रामजी का चरित एक पुण्यमय मानससरोवर है जिसमें स्नान करने
से त्रिविघ ताप दूर होते हैं ।
'रचि महेश निज सानस राखा । पाइ सुसमय शिवा सब भाखा ॥
बाते. रामचरितसानस्र वर | घरेड नाम हिय हरि हरथि दर ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...