मलयालम साहित्य का इतिहास | Malyalam Sahitya Ka Etihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62.57 MB
कुल पष्ठ :
249
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. के. भास्करन नायर - Dr. K. Bhaskaran Nair
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृत भाषा का प्रभाव (७ प्रदेश के मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया। उस समय मन्दिर सभी वर्गों के केन्द्रस्थान बन गये । तब उन्होंने मनोरंजन की कई परिपादियाँ बनायीं जिनमें प्रधान था पौराणिक कथाओं को बड़ी तन्मयता से लोगों को सुनाना । संस्कृत भाषा के ग्रन्थों के आधार पर विद्वान लोग साधारण जनता को कथाएँ सुनाते थे। बीच बीच में संस्कृत इठोकों के अर्थ भी सामयिक बातों के उदाहरण देकर बताये जाते थे। इससे ऐसी कथाएँ सुनने में लोग रुचि लेने लगे। इस प्रकार के कार्य-क्रम का भार उठानेवाले लोगों को चाक्यार कहा जाता था। कुछ काल के बाद चाक्यारों की एक जाति बन गयी । वे लोग संस्कृत पद्यों के अधे सामान्य भाषा में कहकर सुनाने लगे तो लोगों का चाव दिन-दूना बढ़ने ठगा। घीरे घीरे सहुदय नंपू्तिरियों ने यह पद्धति निकाली कि संस्कृत नाटकों के अभिनय के आरंभ में रंगमंच पर एक व्यक्ति को कथा का सार समझानें के. लिए भेजना आरम्भ किया। वह व्यक्ति विदूषक नाम से पुकारा गया। विदूषकों ने हास्य-रस-पूर्ण वाक्यों से कथा की महिमा के बारे में बोलते हुए लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया । उनकी भाषा सिली- जली थी। अत लोग आसानी से संस्कृत के नाटकों का कथा-सार समझ जाते थे। अब नाटक में एक नया परिवर्तन आया । पहले अभिनय के साथ विदूषक के आगमन ने सोने में सुगन्ध का काम किया । इस नाट्य-पद्धति को मलयालम में कूटियाटुटम कहते थे। मणिप्रवाल दोली विद्वान तथा रसिक नंदूतिरि लोग संस्कृत तथा देशी भाषाओं की मिली- जुली दौली में कुछ ग्रन्थों का निर्माण करने गे । आरंभ में ऐसी बातों के संबंध में कोई नियम नहीं था कि किस प्रकार के शब्द संस्कृत के शब्दों के साथ मिलाने चाहिए तथा संस्कृत भाषा के प्रत्ययों को कब कहाँ जोड़ना चाहिए आदि। वे लोग अपनी अपनी इच्छा के अनुसार दोनों भाषाओं के दाब्दों तथा प्रत्ययों का प्रयोग अपने प्रन्थों में करते थे। धीरे धीरे उसमें भी
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