लालिमा | Lalima
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.91 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
प्रफुल्लचंद्र ओझा - Prafulchandra Ojha
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भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'हघ [ शालिमा
के सहारे गद्दे पर लेट रहे । सामने घड़ी टिक-टिककर रही थी ।
पहले तो बे घड़ी की गति की आर एकटक दृष्टि लगाये रहे, फिर
यकायक कलुश्रा के जीवन पर विचार करने लगे । बेचारा सबेर
से लेकर रात के नौ-दस बजे तक काम करता है श्रौर पाता कया
है गिनती के ग्यारद रुपये । रसके घर में उसकी स्त्री है, बुढ़ी मां
है। तीन प्राणियों का जीवन इन्हीं ग्यारह रुपयों पर निर्भर
रहता है ! वह खुद तो मेरे यहाँ प्रायः बचा-खुचा खाना सत्र
लेता है । इस तरह उसे कभी-कभी अच्छा खाना मिल भी जाता
है, पर उसकी घरवाली तथा उसकी माँ भला क्या खातीं होगी '
जौ-चने की रोटी, श्वरदर की दाल, दो-एक लाल मिरचे व्ौर
बहुत हुभ्ना तो घाज़ार का बनावटी थी ! बस यढ़ी उनका भोजन.
है! और कपड़े-कपड़े भी श्रच्छी तरह वे क्या पाती होंगी :
मेरे घर के फटे-पुराने कपड़ों से दो उनका निर्वाह होता दे!
हाय ! बेचारा गरीब नौकर ! और मैंने उस पर द्ाथ उठाया !!
इस तरह पदले कलुआ के पीटकर, फिर उसकी ग्ररीवी का.
“विचार करते-करते दीनानाथ सो गाय ।
कलुद्ना भाँसू पॉछ-पाँछकर साबुन उठा लाया छोर _स्वूब
मल-मलरूर अपन दाथ घाने लगा । तमांख् पीने के कारण
'चसके हाथ से दी तो. बदबू झायी थी और इसीलिए उस पर मार
पड़ी थी : कलु्ा, ऐसा जान पढ़ता था कि, सारा अपराध.
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