पालि साहित्य का इतिहास | Paali Saahitya Ka Itihas

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Paali Saahitya Ka Itihas by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.६ पालि त्रिपिटक में बुद्कालीन भारत के समाज राजनीति भूगोल का काफी मसाला है । इनसे भी विद्यार्थी की भूख और तेज हुई । पालि टेक्स्ट सोसाइटी लंदन के त्रिपिटक के संस्करणों की विद्वत्तापूर्ण भूमिकाओं नें आग में घी डालने का काम किया । उन्होंने पालि टेक्स्ट सोसाइटी के जर्नल के पुराने अंकों को भी पढ़ डाला । इसके बाद एशियाटिक सोसा- इटी कलकत्ता रायल एशियाटिक सोसाइटी ब्रिटन सीलोन बम्बई के पुराने जनेलों का पारायण किया । ब्राह्मी लिपि से हजारीबाग जेल में परिचय हुआ था । यहाँ एपीग्राफिका इंडिका की सारी जिल्दें देख डालीं । छः-सात महीने बीतते-बीतते भारतीय संस्कृति की गवेषणाओं के बारे में उनका ज्ञान गण और परिमाण इतना हो गया था कि जब मागंबुगं जमंनी के प्रोफसर एडाल्फ ओटठो विद्यालंकार विहार में आये तो उनसे बातचीत करके उन्हें हैरानी हुई कि राहुल जी किसी विद्वविद्यालय के कभी विद्यार्थी नहीं रहे । वस्तुतः इसके पीछे केवल चन्द महीनों की पढ़ाई ही नहीं पहले अव्यवस्थित रूप से पढ़ा छिटफुट ज्ञान भी था । हाँ यह बात अवश्य थी कि सभी तरह के ज्ञानों ने मस्तिष्क और स्मृति के अन्दर उथल-पुथल मचा करके उनमें एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा कर दिया था । ढाई हजार साल पहले के समाज में बुद्ध के युक्तिपूर्ण सरल और चुभने- वाले वाक्यों का राहुल जी तन्मयता के साथ आस्वाद लेंने लगे । त्रिपिटक में आये मौजिज और चमत्कार अपनी असंभवता के लिए उनकी घणा नहीं बल्कि मनोरंजन करते थ । विकास का प्रभाव हर चीज पर पड़ता है तो बुद्ध-वचन इसके परे कंसे हो सकते हैं । राख में छिपे अंगारों या पत्थरों से ढंके रत्न की तरह बीच-बीच में आते बुद्ध के चमत्कारिक वाक्य उनके मन को बलात्‌ अपनी ओर खींच लते । जब उन्होंने केसपुत्रिय कालामों को दिये बुद्ध का उपदेश-- मत तुम अनुश्रव श्रुत से मत परंपरा से मत ऐसा ही है से मत पिटक-संप्रदान अपने मान्य शासन को अनुकूलता से मत तरक॑ के कारण से मत जय न्याय -हेतु से मत वक्ता के आकार




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