सेहरे के फूल | Sehre Ke Phool
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
777.75 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सेहरे के फूल श्ठे
बहुत बुरी हो गई हैं ।”
यह उनकी सबसे छोटी वेटी नज्मा कह रही थी जो श्रभी सिफ़
छह साल की थी ।
“क्या हुम्रा था ? ताहिर ने रजिया से वसाहत चाही ।
रजिया ने भीगी बिल्ली बनते हुए कहा--
“ससईदा को छोटा समभ कर मैंने पढ़ने पर एक जरा-सा मार दिया
था, बस, उस पर वह मुझे वुरा-भला कहने लगी श्रौर' 1”
ताहिर साहिब यकवारगी श्रपनी बेटी रजिया की वात काट कर
बोले--
“स्प्रौर इस पर तुम्हारी दादी श्रम्मा को गुस्सा श्रा गया होगा रो
एकाएक वे श्रपने श्रागे वाली प्लेट खिसका कर वोले--“ब-खुदा, मैं
तो तंग श्रा गया हूँ इस सईदा की बच्ची से ! वाप के होते हुए यह गैर
की श्रौलाद न जाने कब तक मेरे सिर पर सवार रहेगी ? जैसे कि
हमारी ही हवेली दुनिया-जहान का यतीमखाना बन कर रह गई हो ।”
वे गर्दन भटक कर बेज़ारी से वोले--“लाहोल बिला कुव्वत दर
वे श्रपनी जान से श्राजिज़ श्राते जा रहे थे ।
सप्न जाने यह हमारी श्रम्मीजान साहिबा को भी क्या सूभती है,
जब देखो, उसी श्रभागी लौण्डिया के पीछे हंगामा ! वहित थी एक,
ब्याह दी गई। श्रव श्रगर वह मर गई है तो इसमें हमारा क्या कसूर
कि उसकी वेटी को भी हमीं पालें । वाप जिन्दा है उसका । मर नहीं
गया ।” वे दस्तरख्वान से उठकर खड़े हो गए ।
“हमारी श्रम्मी जान साहिवा भी श्रच्छी-खासी मुसीबत हैं, हमारे
लिए ।” वे वुदवुदाए ।
मरती भी नहीं है।''
“अ्राप उन्हें कुछ न कहें ।” श्रनवरी श्रपने दुपट्टे के श्राँचल से
भ्रपने मगरमच्छ के भाँसू पोंछती हुई श्रपने शोहर के सामने श्राकर खड़ी
हो गई ।
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