ज्वार भाटा | Jawar Bhataa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्वार भाटा ११ जीवन में कहीं कोई महत्व नहीं है । श्रीर इसीलिए वह जनादन को एक तरह से भूल सी गयी है । इसीलिए उसने श्रपने श्राचार- व्यवहार और भावों से यह कभी प्रकट नहीं होने दिया कि जनादन भी कोई एक था, जिसे उस ने अपना समका था, अथवा जो श्रत्र भी उसका बेसा ही अपना बना हुआ है । किन्तु अपरिचित, अप्रत्याशित श्रौर श्रकस्मात '्राकर उसी जनादन ने, कुछ ही क्षणों में, उसके रत्नाकर से भरे पूथण जीवन को श्रपने एक ही स्पर्श से इस तरह जो प्रकम्पित कर डाला है, यह क्या है? पूर्शिमा की विचार दृष्टि एकमात्र इसी प्रश्न के समाधान में लीन है । बार-बार बह सोचती है--मैंने तो केवल कहा ही भर था कि श्रगर तुम मुके न, मिले. तो मेरा मरण निश्चित है। मैं इसे निभा नहीं सकी । विपरीत इंसके मैं यही सोचती हूँ कि मेरा उस शवस्था का वह सब सोचना एक भाव-प्रवणता मात्र थी-श्वपरि- पक बुद्धि और चेतनाका केवल एक भावात्मक प्रमाद था । सोचती है यही मेरे लिये श्राज एक महासत्य है। श्र श्रट्टाइस वर्ष के तरुण तपस्वी का यह अविवाहित जीवन. देश- सेवा के युग-युग बन्द्‌- नीय महायज्ञ में सका तिल तिलतर जल जलकर. यह श्माहुति- दान ही झसत्य श्ौर मिथ्या है । उन्होंने कहा था--'तुम चाहे अभने ब्रत से विचलित भी हो जाओ, पर में तो मरण-पयेन्त तुम्दारी प्रतीक्षा करूँगा ही। सो , मेरा विचलित होना मेरी बहुत बड़ी सफलता है श्रौर जनादेन का यह श्विचलित तप-पू्ण॑ जीवन ही उसकी असफलता । तो वह प्रतिज्ञा जो पूरी नहीं हो सकी, गौरव माने अपनी श्रपूर्णता पर ! श्र वह संकल्प जिसने अपने को श्राचार का रूप देकर श्रग्नि-परीक्ता में स्वण की भाँति जाज्वल्यमान कर दिया हो, मिध्या, तुच्छ श्औौर हेय




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