संगीत दर्शन | Sangeet Darshan
श्रेणी : संगीत / Music, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.02 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(1) विचार करना के सन में सबसे पहले
कोई विचार होता है। यह विचार किसी घटना के परिणामस्वरूप भी पैदा
हो सकता है । श्रपने मस्तिष्क में स्थित उसी विचार को वह कलाकृति के
रूप में मू्ते रूप प्रदान करता है । कृति की धारणा उसके मस्तिष्क में स्पष्ट
होनी जरूरी है । क्या बनाना है श्रथवा चित्रित करना है श्रथवा गाना है,
यहीं विचार यदि उसके मस्तिष्क में स्पष्ट नहीं होगा तो वह न चित्र बना
सकता है, न गा सकता है ।
(2) ध्यान को श्रपने विचार को साकार
रूप देने के लिए उस पर ध्यान केन्द्रित करना, उस पर चितन-मनन करना
बहुत जरूरी है । एकचित्त हुए बिना न वह नवीन कल्पना कर सकता है श्रौर
नही उसे प्रस्तुत कर सकता है । मूर्ति अ्रथवा चित्रकला में ध्यान विचलन से
छनी-हथौड़ा अथवा तुलिका पर हाथ फिसलने से कृति खण्डित हो सकती है,
बिगड़ सकती है । अतः कृति बनाते समय ध्यान की एकाग्रता व उसी का
मनन आवश्यक है । यहीं कारण है कि शिल्पी या चित्रकार कृति बनाते
समय श्रपने विचारों में खोए रहते हैं । इस प्रकार के ध्यान व मनन से युक्त
कृति ही सौन्दयंमयी होती है श्रौर भाव-सम्प्रेषण में सफल होती है । .
(3) कल्पना (1018 ठा080070)--कत्पना के बिना कला का श्रस्तित्व
नहीं है। कल्पना ही वह माध्यम है जिसके द्वारा कला सदा नवीन रूप
धारण करती है । पुराने भवन निर्माण व श्राधुनिक भवन निर्माण, प्राचीन
चित्र शैली व झ्राधुनिक शैली भ्रादि में ्न्तर श्राने का बीज इसी कल्पना में
निहित है । एक राग सेकड़ों वर्षों में भी पुरानी नहीं होती, उसका कारण
यहीं कल्पना है जिसके द्वारा हर गायक उसे श्रपने तरीके से प्रस्तुत कर
न॑वीनता प्रदान करता है । विषय चाहे कलाकार प्रकृति से ले परन्तु प्रस्तुत
उसे वह कल्पना से सजाकर ही करता है ।
(4) श्ाध्यात्मिकता काल से ही भारतीयों के
जीवन में धमं व श्रध्यात्म की प्रधानता रही है, इसलिए कला का श्रन्तिम
उद्देश्य भी श्रध्यात्म से जुड़ा है । कला में इतनी शक्ति हो कि वह मनुष्य को
की श्रोर प्रेरित कर सके । नेतिकता व' श्राध्यात्म विहीन कलाएँ
निम्न कोटि की होती हैं । कलाकार स्वयं उस श्रानंदानुभ्ूति तक पहुंचे जिसे
ब्रह्मानन्द सहोदर कहा गया है । कला में मनुष्य को मोक्ष मार्ग की श्रोर
उन्मुख करने की शक्ति होनी चाहिए |
(5) प्रकृति (र&पट)-- अध्यात्म से जुड़ा होने पर भी कलाकार प्रकृति
का सहारा लेता है । प्रकृति की उपमाएँ देता हैं ज॑से मेघ,. चाँद, इंद्रधनुष |
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