जाग्रति का सन्देश | Jagrati Ka Sandesh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jagrati Ka Sandesh   by गणेश पांडेय - Ganesh Pandeyस्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

गणेश पांडेय - Ganesh Pandey

No Information available about गणेश पांडेय - Ganesh Pandey

Add Infomation AboutGanesh Pandey

स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ सन्तान इस समय उन देशों में सचमुच पूजा जा रहा हैः जो आज सेकड़ों से मूर्तिपूजा के बिंरुद्ध गला फांड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं । यह किसकी शक्ति है ? यह तुम्हारी शक्ति या हमारी नहीं यह किसी की शक्ति नहीं है । जो शक्ति यहाँ पर रामकृष्ण परमहंस के रूप में आविभूत्त हुई थी यह बद्दी शक्ति है। क्योंकि तुम हम साधु महापुरुष यहाँ तक कि सारा ब्रह्मारड ही. शक्ति का विकाश मात्र है कहीं पर उसका कम विकाश है कहीं पर अधिक । इस समय हम लोग उस महांशक्ति के खेल का श्रारंभ मात्र ही देखते हैं। और वर्तमान युग का अन्त होने के पहले ही तुम इस खेल को अत्यन्त आश्चय-जनक खेल को प्रत्यक्त करोगे । भारतवर्ष के पुनरुष्थान के लिये इस शक्ति का विकाश ठोक समय पर ही हुआ है । दम लोग जिस मूल जीवनी शक्ति के द्वारा भारत को. सदा जीवित रखेंगे इस बात को कभी कभी भूल जाते हैं प्रत्येक जाति के उद्देश्य सिद्धि करने की भिन्न मिन्न कायें-- प्रणाली होती है । कोई राजनिति कोई समाज सुधार और कोई दूसरे ही कुछ को प्रधान मानकर कार्य करता है। हम लोगों को धर्म को छोड़कर काये करने का दूसरा साधन ही नहीं है । अंग्रेज लोग राजनीति की सहायता से धर्म को समभते हैं। वैसे ही अमेरिकन लोग समाज-सुधार की सहायता से सहन हीं धर्म को सम सकते हैं किन्तु हिन्दू-राजनीति समाज-सुवार तथा श्र सभी वस्तुओं को धर्म के अन्तगंत न करने से समक ही




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now