स्मृति - सन्दर्भ भाग 3 | Smriti Sandarbha Vol - 3

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Smriti Sandarbha Vol - 3  by श्री मन्महर्षि - Sri Manmharshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११ - ट अध्याय प्रधानविषय . पूषाछु १ मेंप्रजाको अभय देना यह राजा का परम धरम बताया गया है (३०६-३२३) । राजा की दिन- चर्या का वर्णन और प्रज्ञा का पाछन, दुष्ट राज- कमवारियों से तथा उत्कोच जीबियों का .( रिश्वत छेनेवाढों का ) सब धन छीनकर राज्य. से निकाछ दे और उसके स्थान पर श्रेष्ठ जीबियों को सम्मान से रखे । जंसे-- . अन्यायेन नुपो राष्ट्राट्‌ स्तरकोष॑ यो 5 भिवद्ध येत्‌ । . सोउचिरादिगतश्रीको नाशमेति सबान्धव: ॥। अर्थात्‌ जो राजा अन्याय से राष्ट्र का रुपया अपने खजाने में जमा करता दै वह राजा बद्डुत जल्दी सपरिवार नष्ट हो जाता दै। जब राजा के. दाथ में कोई नया देश आवे तब उसी देश का आचार; व्यवहार; कुछ स्थिति; मर्यादा -जो वहां पहले से दै उसी पर चछना चाहिये उसमें उठट- नहीं करना चाहिये ( ३९४-३४३ ) । साम; कद ड़, सेद मर ॑ पर प्रयोग करने चाहिये. राजे में यदद बताया है कि पुरुषार्थ और भाग्य...




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