राजपूताने का इतिहास जिल्द - ३ भाग - १ | The History Of Rajputana Vol. 3 Part. 1

The History Of Rajputana  Vol. 3  Part. 1 by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( दे ) [तद्दास-सभ्बन्धघी शोध को पूरे स्थान देते छुप शरीर श्रान्ति-मूलक यातों का निराकरण करते हुए मैंने वि० स० १८८१ से राजपूताने का इति- हास लिखना 'श्रौर खतडशः प्रकाशित करना श्वारंभ किया । बतेमान पुस्तक उक्त इतिद्ास को तीसरी जिल्‍्द का पहला भाग है, जिसमें डूंगरपुर राज्य का इतिद्दास प्रकाशित किया जा रहा है । प्ले चार चार सो पृष्ठों का पएक- पक खाड प्रकाशित किया जाता था, परन्तु उसमें ग्राहकों को अखुविधा होने की शिकायतें झाई श्र मेरे कई विद्वान्‌ मित्रों ने भी यही सम्मति दी कि राजपूताने का इतिहास भविष्य में खरड (किहटांटपए !प8) रूप में न निकाला जाकर यदि प्रत्येक राज्य का इतिहास पक या अधिक स्वतंत्र जिल्‍्दों में निकाला जाय श्रौर प्रत्येक भाग के ंत में श्नुक्रमणिका रहे तो पाठकों को विशेष सुभीता रद्देगा । उसी के श्रनुसार यदद परिवर्तन किया गया हे, जिसको द्ाशा है पाठकगणु भी पसन्द करेंगे. । डूंगरपुर राज्य राजपूताने के उस भाग में है, जहां भीलों ऋीं बस्ती से परिपूर्ण पहाड़ियां श्धिक हैं । अंग्रज़ सरकार के साथ संधि स्थापित होने के पूचे वहां कोई श्ंग्रेज़ विद्वान नहीं गया था । वागड़ की सीमा मालवे से मिली हुई है, इसलिए अंग्रेज सरकार से ट्ूगरपुर और बांस- वाड़ा राज्यों की सन्धि मालवे के रेज़िडेन्ट कनल माटकम. के द्वारा हुई थी । उसने अपनी 'म्मायस अऑव सेन्ट्ल इणिडिया' नामक पुस्तक में टूंगर- पुर अौर बांसवाड़ा राज्यों के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह नहीं के समान ही दे । कनेल टॉड को मेवाड़ में रहते समय इतना अवकाश न मिल सका कि वद्द वहां के दद्धिणी पहाड़ी प्रदेश अथात्‌ डूंगरपुर की श्योर ज्ञाकर उस प्रान्त का निरीक्षण कर उसके सम्बन्ध में कुछ लिखता । इसके 'अनन्तर इं० स० १८७६ में 'राजपूताना गेज़ेटियर' लिखा गया और फिर 'वक़ाये राजपूताना', 'वीरघिनोद', चारण रामनाथ रत्नू रचित “इतिहास राजस्थान', 'इम्पीरियल गेज़ेटियर', “ट्रीटीज़ एंगेजमेंट्स पड सनदुज़', 'हिन्द राजस्थान' श्रादि पुस्तकें प्रकाशित हुई, जिनमें डूगरपुर राज्य का कुछ- कुछ वर्णन हे ।




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