मानस - कौमुदी | Manas Kaumudi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Manas Kaumudi by डॉ. दिनेश्वर प्रसाद - Dr. Dineshwar Prasadरेवरेंड फ़ादर कामिल बुल्के - Reverend Fader Kamil Bulke

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ. दिनेश्वर प्रसाद - Dr. Dineshwar Prasad

No Information available about डॉ. दिनेश्वर प्रसाद - Dr. Dineshwar Prasad

Add Infomation About. Dr. Dineshwar Prasad

रेवरेंड फ़ादर कामिल बुल्के - Reverend Fader Kamil Bulke

No Information available about रेवरेंड फ़ादर कामिल बुल्के - Reverend Fader Kamil Bulke

Add Infomation AboutReverend Fader Kamil Bulke

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(११ । वाल्मीकि में मायासीता और रावण द्वारा उसके हरण का वृत्तान्त नहीं मिलता और न ही उसमे सेतुबन्घ के समय राम द्वारा शिव की प्रतिष्ठा की कथा आती है 1 ये दोनों प्रसंग अध्यात्मरामायण मे भी है 1 किन्तु, मानस के कथानक को केवल वाल्मीकि और अध्यात्मरामायण की सामग्री तक सीमित कर देखना उचित नहीं है। इस पर प्रसन्नराघव, महानाटक, शिवपुराण, भुशु डिरामायण, भागवतपुराण आदि कई रचनाओ का प्रभाव पडा है। सती द्वारा राम की परीक्षा का शिवपुराण से गृह्दीत है तथा पुष्पवाटिका का प्रसंग प्रसन्नराघव से । प्रसन्नराघव मे सीता पुज करने के लिए च्डिकायतन की ओर जाती है, तो राम सीता और उनकी सलियों का वार््तलाप छिप कर मुंनते हैं । दोनो एक हूसरे को देखते ओर अनुरक्त हो जाते हैं। कुछ सधोधन के साथ यही प्रसंग मानस में आया है ।. धनुप-भग के बाद. आयोजित परशुराम- लक्ष्मण-सवाद भी प्रसतराधव पर आधारित है।. विद्ञ्ूट में जनक के आगमन ( ) और पस्पा-सरोवर के किनारे नारद के आगमन तथा रास नारद- सवादे ( अरण्यकाण्ड ) के स्रोत क्रमश श्रवणरामायण और रामगीतगोविन्द हैं । लकॉकाण्ड का अगद रावण-सवाद महानाटक पर आधारित है। ब्यौरे मे जा कर देखने पर मानस के कथानक के कई छोटे-बड़े प्रसंग वात्मीकि और श्रध्यात्म- रामायण से भिन्न खोतो पर आधारित सिद्ध होते हैं । लेकिन, इसका अये यह नहीं कि मानस यहाँ-वहाँ से गृहीत सामग्री पर आधारित रचना है। अपनी समग्रता मे यह एक सौलिक कृति है। इसकी मौलिकता पुर्व॑परम्परा से गुहीत सामग्री के चयन भौर व्यवस्थापन मे है, जिसके पीछे भक्त, समाजनिर्माता और कवि की सम्मितित दृष्टि काम करती है । इसमें कथा के शिल्प, राम तवा उनसे जुडे हुए पाती की चरिव्रगत मर्यादा और अपने मुख्य प्रतिपाद्य दिपय भक्ति की दुष्टि से वहुत से प्रसगो को या तो पूरी तरह छोड दिया गया है या उनका सकेत भर किया गया है तथा कई घटनाओं का क्रम परिवतित कर दिया गया है । छोड़े हुए कुछ प्रतय और विवरण हैं--राम और सीवा की श्य् गारिक चेष्टाएँ शम्दूक-वंघ गौर सीतान्त्याग ।. जहाँ वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ के अश्वमेघ यज्ञ के संकल्प के बाद गे की कथा ( बालकाण्ड, सगें 6-११ ), अश्वमेघ यज्ञ ( सगे १२-१४) और पुल्लेष्टि यज्त [ सगे १५-१८ ) का विस्तृत विवरण मिलता है, वहाँ मानस में पूरे विपय को बहुत कम पक्तियो में समाप्त कर दिया गया है ( दे? मानस-कोमुददी, स० १६ ) 1 वाह्मीकि मे, मृत्यु से पूर्व दशरव कौशल्या को अन्धतापस की कथा सगे ६३-६४ में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now