मुद्रा राक्षस नाटक | Mudrarakshas Natak

Mudrarakshas Natak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३ ) (प्वाणुक्य--( इपेपूडक स्वगत ) हमारे रिपुद्ल का पदुपाती क्तषपणक 1 ( प्रकट ) क्या नाम दे उसका ? गुप्तचर--उसका नाम है । प्दाणक्य--च्पणक इमारे रिपु-टल का पक्षपाती दै, यदद श्रापने केसे जाना १ गुप्तचर--क्योंकि उसने झमात्य राचस द्वारा नियुक्ता विष-कन्या का देव पवेतेश्वर पर प्रयोग किया । स्वगत ) यदद तो हमारा गुस्चर नीवसिद्धि दे । ( प्रकट ) मदर पुरुष | श्रच्छा; दूसरा कौन है ? / शुप्तचर--श्रार्य । दूसरा श्रमात्य सच्चुस का प्रिय मित्र शफटदास नाम का कायस्थ दै। प्याणुक्य--( हँंसकर स्गत ) “कायस्थ' यह तुच् वस्तु है ! फिर भी हुच्छ भी शनु की श्रवदेलना .नद्दीं करनी चाहिये । उसके लिये मैंने सिद्धाथक फो उसका मित्र बनाकर रख छोड़ा है | ( प्रकट ) भद्र पुरुष | तीसरे को भी सुनना चादता हूँ । रुप्तचर--तीसरा भी; अमात्य राचुस का मान दूसरा ददय, कुसुमपुर-निवासी वर जौदइगी सेठ चंदनदात है, जिसके घर में श्पने कुद्द भर को घरोदर के रूप में छोड़कर शमात्य राचस नगर से चला गया है । 'चाणुक्य--( खगत ) अवश्य बढ़ा भारी मित्र है ! क्योंकि राचुस ऐसे पुरुषों के पाख कमी भी निज परियार को घरोदर के रूप में




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