श्री गुरु गोविन्द सिंह जी | Shri Guru Govindsingh Ji

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Shri Guru Govindsingh Ji by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३० समय शुरु तेगबद्दादुर जी अपनी गर्भवती स्त्री - माता न्यूजरी जी को पटने में छोड़ते गए थे । चद्दीं इनका जन्म डुआ था। जस्तु जो दो अपने जन्म का पूर्व दृत्तांत विचित्र नाटक नामक अंथ में इन्दोंने यों लिखा है कि पूर्व जन्म में में दुश्मन के माम का राजा था और धर्मपूर्वक राज्य किया फरता था | घुद्धावस्था भाप्त होने पर अपने पुत्र विजय राय को गद्दी देकर द्देमकूट+ नामक पव॑त पर जहाँ अर्जुन ने तपस्या की थी मंडन क्रषपि से उपदेश पा चढा गया और पदमासन बंध मद्दाकाल के ध्यान में सग्न हुआ । छुछ काल तक तपस्या के बाद महाकाल पुरुष ने मुझे दशशन देकर अपने निज पुत्र को पदवी दी आर कहा कि मेरे अन्य अवतार सब स्वयमेद ईश्वर फद्दडाए हैं पर तुम अपने को ईश्वर का ७ दुएदमन या धुप्टदुम्न किसी समय में काठियावाड प्रान्त में अमरकोट का राजा था । धड़ा प्रजावत्सछ और दया था । लोगों ने इसका साम मक्तचस्सल रख छोड़ा या । मिघ तथा. कार्डियायाइ मे पत्थरों पर अग्तक उसकी खुदी हुई मिछती है लोग इठुया चढ़ा कर इनका पूजन करते हैं 1 के यद पर्दत उतरा खंड में हिमालय पहाड़ की दखल के संतर्यत बदरीनाय से करीय सात आठ कोस पर दे | यहां महाकाल का एक मदिर बना हुआ है । मंदिर मे महाकाल भगवान को प्रतिमा विराजमान दे जिन्हें कडट्टा प्रठाद इटवा भोग स्थगता है। इसा पर्वत पर अर्जुन ने तपस्या कर महाकाल से घरदान में पा जयदय को मारा था




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