गढ़ कुंडार | Garh Kundar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.72 MB
कुल पष्ठ :
470
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४ 9
थी । उनके पतन की जिम्मेदारी उनके निज के दोषों पर कम है ।
चसका दायित्व उस समय के समाज पर अधिक है । लेखक को
इसी कारण 'ाग्निदत्त पाडे की शरण लेनी पढ़ी ।
जिस तरह गढ-कुडार पर्वतों 'और वनों से परिवेष्रित बाइर की
च्ष्टि से छिपा हुआ पडा है, उसी तरह उसका तत्कालीन इतिहास
भी दवा हु्मा-सा है ।
परतु वे स्थल, बद्द समय 'और समाज 'झब भी 'अनेको के लिये
'झाकपंण रखते हैं ।
उपन्यास में वर्णित चरित्रो के वर्तमान सादश्य प्रकट करने
का इस समय लेखक को अधिकार नहददीं, केवल छापने एक मित्र
का नाम छृतज्ञता-ज्ञापन को विवशता के कारण बतलाना पडेगा ।
| नाम है दुजंन कुम्दार । सुल्तानपुरा ( चिरगाँव से छत्तर में २ मील )
का निवासी है । कहानी में जिन स्थानों का वर्णन किया गया
| है, वे जगलों में 'ास्त-व्यस्त अवस्था में पढे हुए हैं । दुजन कुम्दार
की सद्दायता से लेखक ने उनको देखा । “गढ-कुढार” का छाजुन
_ फ्दार इसी दुजन का प्रति्बिब है । “गढ-कुडार” की कहानी
. चसने सुनी है, उसने समसी भी है या नहीं, यह तो नहीं कददा जा
सकता, परंतु उसको यदद कहते हुए सुना है, “बाबू साथ, सोरे 'चाए
कोड दूँफा-ूँका भले कर हारे, पै नौन-दरामी मोरं कर हुए 7
खक
की
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