हिंदी उपन्यास विविध आयाम | Hindi Upanyas Vividh Ayam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“१६ । प्रेमचन्द से मुक्तिबोघ : एक आपन्यासिक यात्रा है और ससुर के पैसों से वारात का टीमटाम भरा नाटक खड़ा करता है । विवाह के थाद मी पत्नी को प्रेम से जीतने के स्थान पर शूठमूठ के रौव से वण में करना चाहता है । चुंगी दफ्तर का मामूली वलरकं होते हुए मी अफसर की छान दिखाता है उसे निर्घेन रहकर जीना मरने से वदतर प्रतीत होता है। वैमवलालसा के सामने सात्त्विक जीवन का भाद्थ उसे सुद्दाता नहीं है । इसीलिए उसे रिय्वत लेने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होता । चह अपने मन को समझाने के लिए अपनी को दस्तूरी कहता हैं और वौद्धिकीकरण का सहारा लेकर कहता है कि वनियों से रुपया ऐंठने के लिए अवल चाहिए यह के पक्ष में वेतन की कमी का नकं मी पेदा करता है । उसका यह तर्क दिल की सच्चाई से उद्भूत माना जा सकता था, अगर उसमें अतिरिक्त मात्रा में दिखाई देने वाली प्रदर्यना-प्रियता न होती । चस्तुत: उसके चरित्र की नींव में वैमवलालसा (विरोपणा ) दही है। घनलोलुपता के कारण ही वह क्रांतिकारियों के विरोध में बयान देने में उद्यत हो जाता है । विलासबुत्ति ने ही उसकी विवेकधक्ति को कुंठितत बना रखा है । देवीदीन भर जालपा के प्रन पुन किए गये प्रयत्नों के कारण ही बंगुनाहा का स्वून फरने में सहायता देने से रुक पाता है । इस प्रसंग में चह पुलिस की का हू, पर एसी किसी सख्ती का वर्णन उपन्यास में कहीं नहीं है । मीद्ता के कारण ही वह अपने सत्संकत्पों पर दृढ़ नहीं रह पाता । इस प्रकार भात्मकेस्द्रित रमा की स्वाथ॑परता ने उसे जहाँ राक्षस चना डाला हैं, वहाँ कायरता के कारण चह पथु से मी गया-वीता वन गया है। निःस्वार्थ देवीदीन और साहसपण जालपा के कट्टास्ट मे उसको स्वाथ भर भीरुता की वत्तियाँ उमर कर सामने आई :हैं रमानाथ का “सुख के लिए आत्मा बेचने वाला' भले ही कहा गया हो, पर उसमें आत्मा अवद्य हैं । वह पत्नी के गहने चुराने पर 'ग्ठानि का अनमव फरता हैं। करूकश म दान का कंबल लेने पर उसकी भात्ममर्यादा को ठेस पहुँचती हैं सोस्ता के कारण-संकल्पों पर दृढ़ न रह सकने की दुर्वत्ता पर उसे वुरा महसूस होता हैं । उपन्यास के अन्त में दूवते हुए को बचाने के लिए साहस न कर सवने पर लज्जा का. होता है । उसकी यह थर्मिन्दगी उसके व्यक्तित्व के सत्पक्ष की यातक है । वह पूरी तरह में दिल का चुरा भादमी नहीं । बह कमजोर स्वभाव मवच्य है । जोहस ने रमानाथ के छिंए कहा कि उसके लिए की जरूरत है, जंजरों की नहीं ।** उसने स्वयं अपनी दुर्घलता पर दः्वान्‌मव्र करते हुए कानरनामूवक जालपा से कहा है कि नुम मुझे ऊँचाई पर मत्त चढ़ाओ, बयों कि मुझम इतनी दाक्ति नहीं है ।'' स्पप्टतः ही वह रीढ़द्दीन व्यक्ति रमानाथ भर जालपया का सम्बन्ध बिदवास का सम्बन्च नहीं है । जाठपा के सतिरिक्त रमानाथ का जोहरा से मी सम्बन्ध हुमा । जोहरा रमानाथ को 'विवेका-




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