हिन्दी काव्य प्रवाह | Hindi Kavaya Pravah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
365.07 MB
कुल पष्ठ :
828
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुष्पा स्वरूप - Pushpa svarup
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श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१८ )
आदि-काल का इतिहास रचा ही नहीं जा सकता । जिस प्रकार अंग्रेज़ी अथवा
फ्रेंच साहित्य का इतिहास छिखते समय प्राचीन अंग्रेजी अथवा प्राचीन फ्रेंच की
_ पेक्षा नहीं की जा. सकती, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखते
समय अपभ्रंश साहित्य की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती।
अपभ्रंश साहित्य के बाद डिंगल और पिंगल भाषाओं में लिखे साहित्य का
चर्चा आता है। चारणों ने डिंगल भाषा में रचनाएँ लिखीं और भाटों ने पिंगल
में। रास ग्रंथों की रचना मूलतः पिंगल भाषा में हुई यद्यपि उनमें डिंगल के बहुत
से दब्द व्यवहृत हुए हैं। इस युग को आचायें रामचन्द्र शुक्ल ने वीर गाथा काल
कहा है और इसी काल को वह हिन्दी साहित्य का आदिकाल मानते हैं ।
_ मगर वीरगाथाकालीन साहित्य की जो जाँच-परख पिछले वर्षो में हुई है.
उससे एक बात यह सिद्ध हुई कि उनमें से कौन-सा मूलतः श्शंगार रस प्रधान है
और कौन-सा वीर रस प्रधान हैं, यह निर्णय कठिन है। दूसरी बात यह कि इन
रचनाओं की प्राचीनता संदिग्ध है। अधिकतर विद्वानों का मत है कि ये रचनाएँ
बहुत बाद की हैं। अतः इस युग को वीर गाथा काल कहना उपयुक्त नहीं है।
साथ ही, जब ये रचनाएँ प्राचीन नहीं हैं तो इन्हें हिन्दी साहित्य की आदि-
कालीन रचना के रूप में भी स्थान नहीं मिलता । फिर, विवश होकर हिन्दी
साहित्य के आदि काल के लिए हमें अपभ्रंश को ही मान्यता देनी पड़ेगी ।
वीरगाथाकालीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन अध्ययन और अनुशीलन हो.
रहा है। जहाँ तक इस काल के सम्बन्ध में आचाये शुक्ल की मान्यता का प्रश्न
है, वह तो अब अस्वीकृत हो ही चुकी है, परन्तु यहाँ शून्य की सी जो स्थिति
पैदा हो जाएगी, उसका क्या होगा? इन तीन-चार सौ वर्षों के इतिहास की
पुनरंचना अनिवायं हो उठी है। संवत् १००० से चौदहवीं शताब्दी विक्रमी
(विद्यापति के काल) तक का इतिहास पुर्नरचित होकर सामने आ जाय तो
यह शून्य समाप्त हो।
विद्यापति के बाद से तो हिन्दी साहित्य का क्रम बद्ध इतिहास मिलता है।
परन्तु इस काल से रीति काल तक का जो मध्ययुगीन साहित्य है, उसका वर्गी-
करण भी पूर्णतया वज्ञानिक नहीं हुआ है। भक्ति साहित्य का स्थान तो किसी
क़दर हिन्दी साहित्य के इतिहास में सुनिश्चित हो गया है, परन्तु सन्त और सूफ़ी
साहित्य का जो कुछ अनुशीलन और मूल्यांकन हो चुका है उसको दृष्टि में रखते
हुए इन साहित्यों को हिन्दी साहित्य में पुनर्ध्तिष्ठित करने की आवश्यकता बनी
हुई है। संत और सूफी साहित्य का गहन और विस्तृत एवं व्यापक अध्ययन हो
चुका है।. उसे संजोकर इतिहास के क्रम में रखा जाय, यह कार्य अब हो ही जाना
जाना. चाहिए।
भक्ति काल के साहित्य की उत्कृष्टता और. महानता को देखकर उस काल
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