ऋण - परिशोध | Rin Parishodha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
काली प्रसन्नदास गुप्त - Kali Prasanndas Gupt,
पं. रामेश्वर प्रसाद पाण्डेय - Pt. Rameswar Prasad Pandey
पं. रामेश्वर प्रसाद पाण्डेय - Pt. Rameswar Prasad Pandey
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
81.51 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
काली प्रसन्नदास गुप्त - Kali Prasanndas Gupt
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पं. रामेश्वर प्रसाद पाण्डेय - Pt. Rameswar Prasad Pandey
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“१९ ऋण-परिशोध । .. [ तीसरा
जन्टीं बनीं चिनं यिपििििक का
का जगह गा जाग कह का की कक कह के की कह के के व ७ अवििििि न चनतानी७
'शहने और बाल-बचोंको संभाजते रहनेसे भोजन मिलेगा । भाई माणिककां पढ़ा
लिखा कर मनष्य बनायँगे, ऐसा कोई लक्षण दिखाई नहीं देता
इस पर भी भार्भीका तिरस्कार धीरे धीरे उसे असह्य मालम होने लगा. । माणि-
कसे कोई चरटि होने पर, या बाल-सुलभ कुछ चपलता दिखाने पर उसके पिताकी बाते
उठा कर श्राय: भाभी ऐसी कठोर बातें कहती थी, जिन्हें जया सह न सकती थ।
भाइं भी इसका कोई प्रतिकार न कर, बिना विचारे बहन पर हो दोष मढ़ते थे ।
बहुत कुछ सोच-विचार कर अन्तमें जयाने स्थिर किया कि निष्ठुर भाई ओर
भासीके आश्रयमें और उनके घरमें वह न रहेगी । दूसरेके घर काम-काज कर
:मोजन-वख्रका प्रबन्ध करेगी और लड़केकों लिखना-पढ़ना सिखायेगी
.. उसी दिन दो पहरकों भामीसे जयाकी बड़ी लड़ाई ठनी । बच्चा रो रहा. था
इससे भामीकी नींदमें बाधा पड़ रही थी । भाभीने. माणिककों बच्चेकों गोदमें
लेकर वहीं घमनेकी आज्ञा दी । दुष्ट माणिकने उसके हुक्मकों. नहीं सुना । वह दोड़
कर अमरूदके झाड़ पर चढ़ गया और असरूद खाने लगा । क्रॉंघसे भाभी माणिककों
पकड़ने बाहर चली । गुस्सेके कारण, असावधानीके साथ चलनेसे, लड़का हाथसे
गिर पड़ा और जोरसे रो उठा । भामीके क्रोघानलमें घतकी आइुदि पढ़ी
अमरूदके पेंड पर माणिककों चढ़ा देख कर उसने हाथका कटोरा उस पर फेंक मारा |
कटोरेका किनारा माणिककी नाक पर जाकर ऊगा, जिससे रक्त बहने छंगा । माणि-
कने रोते रोते जाकर मासे फरयाद की 1
निष्ठुरता-पूवेक मारनेसे माणिकके. नाकसे जो खूनकी धारा बह रहीं थी
उसे जयाका हृदय न सह सका । जयामें तेज था । सहन करने पर उसके समान कोई
सहन भी न कर सकता था, और नाराज होने पर कलह करनेमें वह साक्षात्
णचण्डिकाकी, सूर्ति भी धारण कर सकती थी । जयाने इतने दिन सब कुछ सहा,
अब वह भाई और भाभीका आश्रय नहीं चाहती, तो इतना क्यों संहे ? माणिककों
बह गोदमें ले कर और ऑँचलसे उसके नाकका खून पॉछते हुए जो मुंहमें आया
नही कह कर भामीकों गालियोँ देने ठगी ।.जया सदा चुपचाप संहन कर लिया करती
थी । आज मामी जयाके ऐसे अभावनीय असम साहसिक आचरणस कुछ काल. तक
पविस्मयसे ठिठक रही । अनन्तर उसने भी मुह खोला । दोनोंमें तुमुठ युद्ध हुआ ।. मह
लेके लोग आ जुटे । मामीने ननदको घरसे निकल जानेका हुक्म दिया । और न निक-
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