स्वस्थ शरीर भाग - 2 | Swasthya Sharir Part - 2

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Swasthya Sharir Part - 2  by पं. रामेश्वर प्रसाद पाण्डेय - Pt. Rameswar Prasad Pandeyसरजू प्रसाद तिवारी - Sarju Prasad Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जौ अर्थावि-शरीर चेषाके द्वारा देहकी स्थिरता, और. शक्ति वद्धित होती है । _ इसे देह-व्यायाम कहते है; उपयुक्त मात्रामें द्यायाम करना चाहिए। व्यायाम द्वारा शरीरमें दठकापन आता है, कार्य करनेकी शक्ति स्थिरता, कलश सहिष्णुता, जठरासिकी वृद्धि होतीं है, और देददके विविध दोष नष्ट होते हैं' । हमारे देशके धघनाद्य-मजुष्य शारीरिक परिश्रम करना निन्दनीय समकते हैं । वे समकते हैं कि उन्दोंने शारीरिक पसिथ्चिम करनेके लिये जन्म नहीं श्रहण किया है। खाने, पीने सोने, गिटपिट करने, आमोद प्रमोदके साथ या निठल्द्ू बठकर घड़ियाँ काटनेके लिए ही उनका जन्म हुआ है । वे शारीरिक परिधमके. परिणामोंसे या तो अनसिज्ञ दोते हैं, या उनकी ओर लक्ष्य नहीं देतें। देशवासियोंकी शारीरिक शक्तिका हास होनेसे देशका अघःपतन ददोता ही है। पाश्चात्य देश, उन्नतिकी ओर बेतरह अग्रसर दो रहे हैं। किन्तु भारतकी दशा, देश-हिंतेषियोंके बहुत. कुछ सिर मारनेपर भी नहीं खुघरती। इसका कारण क्या ? कारण, ं पाश्चात्य-देश-वासियोंकी परिश्रम-शीठता, और भारतीयोंकी आलस्य-प्रियता है। जिस परिश्रम-शीठताकों हमारे देशके बड़े मचुष्य निन्द्नीय समकते हैं, उसीको पाश्चात्य देशके बड़े न मनुष्य अनिन्दूनीय समकते हैं । वे परिश्रमसे प्रेम रखते हैं, आलस्यसे नहीं । यदि देशको सुचारु-द्शामें देखनेकी अभि- ं पी रखते हो तो 'ब्यायाम प्रिय बनो । ही . दरार




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