मुक्ति का रहस्य | Mukti Ka Rahsay

Mukti Ka Rahsay by श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(3७. ) काम -यूरोप में नगर की बोद्धिक कला ने यूरोप का दुराचवार- - तब राँदा जीवन, लेकिन साथ ही साथ नेतिक दाग बनेडशा के लिये झसह दो 3० | उन्दोने जो था, जेला था साफ़ कर दिया ! पार्चात्य सभ्यता के सकषक पर के भीतर कितनी छुराइथों थीं, कितना ' खोसलापन था, बनेडेशा ने खोल कर दिखला दिया । शान यूरोप में एक शोर तो चर सकपि हैं दूलरी श्रोर 'मयंकर म्र्डसिवादी, सदाप्घार और घर्म को काटने वादे, रवस आर नरक की सिध्या भावना मिटाने चाण । खेर यही तो जगत है | यद्दी जीवन है । इलारा मतलब यहां से नहीं, उस बुद्धबाद से देजों इमारे साइित्य के उन सखमाकोचकों की नज़र में बदनाम हो रहा हैं, जिनकी सावुकता भथकर है, लेकिन दधनीय |. हर इसारे लादित्य में निर्माय होने बगा है । तो शुभ हैं झेकिन अभी समन्तदीरी की जरूरत है । ग्येसे ने था. “रप्वयिता के लिये. सब से पढणी बात दे होना, अगर बद बीमार है तो ठसे स्वस्थ कसम उठान' चाहिए ' शोर “खियाँ शाइिस्थ और कला के साथ जो ना केर ले सेकिन घुरूर्षो को तो संधस के साथ काम लेना दी दोगा ” मारे से्कों को स्थेते का यू करना सम खेना ! सादित्य ओर कण में अपनी बीमारियों को दिखा देना मारे लिये अच्छा नहीं दे । जिस करती को इम अपने जीवन सें अनुभव कर रहे हैं, वह सादित्य का नढ्टों है। उसे मार ढातना छोर ! कोई रोचक कथा कर उसे नीचे »पर से जज देना, फक दून चुरा दें ॥ दलारे सोदत्थ में झधिकाश यही हो रहा है । इसारे लेखक तायसेन की रचना करने ते दें, लेकिन भावायेश में रास्ता भूल जाते हैं आर नूरजद्दों का निर्लाग्य कर बेद्ते हैं। अतिसा की सफजता जीवनबल के नापी जाती है । कक के पूर्ण यत्र से जीवन का जगत सुन डी दे | जीनन के वे सत्य जो हें, लासने कॉये जाय, रोष देना । अपने भीतरी विकारों भीर को समाकर साहित्य का




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