इतिहास संग्रह | Itihas Sanghra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ३ को उत्पल बरके उसमें भोगदी इच्छाकी तो दिशिर हुये जय उसके पीछे दौड़ सो भाति चतुरानन भं।र परचानन भी हुये '्स्थीत्‌ जितनीयार ऊुइ्टि बी उननेंदी शिरवों शिरने झपने ब्मयुप्ठ से बट डाला ( सैरव क० दे० ) चाहन-इस सखी नाम-शारदा,गिरा,दियधाजी,साविनी,;घाही 'मादिदे-भौर दाइन इनरा इ्सिनी ई जिससे दाद उत्पत्ति दे-- नदी ( जिसके यशिष याचनपर उत्पन दिया ) गंगा सदी ( भगीरय के माथना से भूतन में थाई » दशावनी नारापण दी नाभि से तरस ना गाया [| |] | सबका. मृशुरीसे नाएइई मगर करयय कामय इडराज ६ सुन | ऋषि ी रद डी संदेश लि इस चर वे




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