हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास भाग 1 | Hindi Sahitya Ke Brahat Itihas Bhag 1

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Hindi Sahitya Ke Brahat Itihas Bhag 1  by राजवली पांडे - Rajbali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४७ 9 रूप विषय रस श्रमिप्राय रीति श्रादि प्रदान किया है । दिंदी फे ऊपर प्रभाव की दृष्टि से राजनीतिक तथा सामालिक परंपरा की श्रपेक्षा संस्कत की साहित्यिक परंपरा बहुत बड़ी दै--वैदिक काल से लेकर मध्ययुग तफ--क्योंकि राजनीतिक तथा सामाजिक से साहित्यिक मूल्य श्रधिक दूरव्यापी श्रौर स्थायी होते हैं । इसमें मुख्य रूप से वैदिक फा साहित्यिक तथा संस्ठत साहित्य की कलात्मफ मान्यताश्रो का विवेचन किया गया है । दूसरे श्रध्याय में प्राकत श्रौर मिश्र संस्कृत का परिचय है। जिप्त प्रकार संस्कृत फी देनें दिंदी के लिये महत्वपूर्ण दें उसी प्रकार प्राकृत श्रौर मिश्र संस्कृत की भी । प्राझृत वास्तव में मूलतः जनभाषा दोने के कारण दिंदी के श्रधिक निफट है। उसमें प्रबंध काव्य मुक्तक काव्य फथासादिस्य नाटक रठ रोति तथा छुंदशास्र की जो परंपराएँ बनीं उनसे हिंदी हुई । तृतीय श्रष्याय में श्रपश्नंश भाषा श्रौर साहित्य का सक्तितत वर्णन है। श्रपश्रंश का भाषा श्रीर साहित्य दोनो की दृष्टि से निक्टतम संबंध है । इससे विपय श्मिप्राय काव्यपरिवेष श्रमिव्यंबना श्रौर छुंदःसंपत्ति सभी हिंदी को दाय रूप में मिली हैं। श्रपन्नंश की इसी परंपरा में प्रारमिक दिंदी का जन्म श्रीर विकास हुश्रा । इस माग के तृतीय संड का विपय धार्मिक तथा दार्शनिक श्राधार श्रौर परंपरा है। यह फटना श्रनावश्यफ है कि किसी भी देश के साहित्य श्रौर उसकी धार्सिक एवं दार्शनिक परंपरा में धनिष्ठ संबंध दोता है। भारत में तो यद संबंध श्र भी घनिष्ट है । श्रपभ्रश में धार्मिक विपयो का प्राघान्य है। वैसे तो दिंदी का प्रारंम राजनीतिक परिस्थितियों के कारण वीरफाव्य से होता दे परत बहुत ही शीघ्र भारतीय धर्म श्रीर दर्शन साहित्य से श्रपना निकट संबंध स्थापित कर लेते हूं । हिंदी साहित्य की शानाश्रयी श्रौर प्रेमाश्रयी परंपराएँ तथा स्माते धर्म पर श्राघा- रित काव्य इसके स्पष्ट प्रमाण हैं । साहित्य के समान ही संभवत उससे बढकर धर्म श्रौर दर्शन की परंपराएँ श्रौर मूल्य दूरव्यापी श्रौर स्थायी होते हैं । धर्म श्रौर दर्शन की परंपरा वेद श्रौर उपनिपद्‌ तक पहुँचती है । इस खंड के प्रथम श्रध्याय में वैदिक धर्म श्रौर नीति का विवेचन तथा श्रौपनिपदिक तत्वज्ञाम का परिचय है । द्वितीय श्रध्याय में जैन धर्म के तत्वश्ञान शानमीमाठा तथा नीति का संचिस विवरण है। इसी प्रकार ठृतीय श्रध्याय में बौद्धधम श्रौर दर्शन का निद्शन इसकी वज्यानी साधना श्रीर श्रवधूती मागे का स्वतंत्र रूप से वन हे क्योकि यदद साहित्य हिंदी के लिद्ध साहित्य के निकट पहुँच जाता है । चतुर्थ श्रध्याय में भारत के सामान्य पॉच दर्शनों का निरूपण है । पंचम श्रष्याय में पौराखिक तथा पष्ठ में तारिक धर्म के शिष्ट श्रंगों का वर्णन है। ससम श्रध्याय में वेदात का श्रपेक्ाकृत विस्तृत परिचय दिया गया है क्योंकि भारतीय दर्शन के चरम उत्फ्प का यह प्रतिनिधित्व करता है श्रीर सबसे श्रघिक दिंदी साहित्य को प्रमावित किया है। सभी वैष्णव एवं शव श्राचार्यो ने वेदात के किसी न किषटी संप्रदाय--




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