हायर संस्कृत ग्रामर | Hayar Sanskrit Grammar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) किया है। डा० वाबूराम सममेत! के अनुसार पतन्जलि गोनदें (सिम्भवत गोडा) के निवासी थे श्रौर उतकी माता का नाम योणिका था। पतसजलि पाणिनि के पोपक हैं। इनको सबरों बड़ी विशेषता सरल और प्रवाहमथ। दसो है जो महाभाष्य के लिसते में प्रपनाई गई है। पतब्जलि वी व्याएयाम्ों की इष्टि' कहते हैं । पतन्जलि ने काव्यावन की सुटियों का सुधार करके वाणिनिं के गत को पुष्टि की है। पाणिनि, कात्यायन श्रौर पतअजलि के पश्चात्‌ मौलिक बैयाकरणों का युग समाप्त सा हो जाता हैं। इसका कारण यह है कि उपपुबत तीनो तप पूत मुनियों ने व्याकरण की दिवेचना को चरम सीमा पर गुनिश्नप का परव्ते पहुँचा दिया था धौर समिवत उसके भध्रागे नियम काल निर्माण करते को झावश्ययता ने रह गई थी | फलत टीकान्युग वा प्रारम्भ होता है। इस युग में पाणिनि, कात्यायन और पतज्जलि वे नियमों को समझाने एवं उन्हें वोधगम्य बनाने की विविध विपियाँ निनासी गईं। इन विधियों से टोता विधि सवत्तिम समझी गई। श्रातों चल कर कुछ विद्वानों ने भ्रावश्यक पाणिनीय सुक्ो वा छोटे छोटे रुपो मे सप्रह भी किया धौर उन्हें सवीत व्यवस्था मी प्रदान मी। सातंवी ई० में जयादित्य प्रौर वामन ने सष्टाध्यायी पर टीका लिला, जो 'बाशिका' के नाम से प्रसिद्ध हुई। 'वाशिका' पर उपटीकाएँ लिखी गई। जितेन्द्र बुद्धि ने स्यास प्ौर हरदतत ने पदम#जरी उपटीकामी की. रचना की! सहाभा्प्य के टीवाकार भततू हरि ने 'वावयपदीय' प्रन्य लिखा। चावयपदीय में झागम, याकय श्र प्रकोण ये तीन कांड [श्रध्याय) हैं। मर्तृ हरि का चलाया हुमा स्फोटवाद श्राण भी प्रसिद्ध है। महाभाप्य पर प्रदीप नामक अन्य टीका प्रथ लिखने वाले कारमीरी पढ़ित नेंयट हैं । डीकामो भौर उपटौकामों के पश्चात्‌ पाणिनीय सूयो की व्यवस्था की आर विद्वानों का ध्यान गया । इस दिशा, में सतू १३५० ई० में विमत सरस्वती ने 'हपमाला“' श्र १४वी शाती मे पडित रामच्ध ने 'प्रशियाकौमुद्दी की रचना को। १६३० दे? के संगम भट्टीजिदीकित ने पाणिनीय सुत्रो को एक नयी व्यवस्था देवर सिदान्त कोपदी की रचना की! यह पुस्तक इतनी श्रधिक




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