अहिल्याबाई होलकर जीवन चरित्र | Ahilyabai Holkar jivan Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.56 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५ 2
सम के बिंदुओं को झठक और पुरुकित कोमल इोठ हप्
रूप से चमके आनंद की साक्षी देने ठगे । मध्याह काठ के
मंद मंद वायु और पक्षियों का पुनः अपने अपने
चासलों से निकछ कर आपस में चों चों रूपी गायन, और
आउड़ियों की कोमल पत्तियां पबन में झूम झूम कर मरद्दारराव
की माता को उनके पुत्र की भाग्यश्री का मानो सुना
रहो हैं ।
मल्द्दारराव की माता पुत्र के निकट पहुँच उसका अपनी
गोद में लेकर अपने हृदय से चिपटाने ठगी और उसके मस्तक
को सैूँघने लगी । जिस प्रकार नवप्रसूता गौ अपने बछड़े को
व्याटकर, तथा कई दिन पश्चात् पति परती के देन और
पिता पुत्र के मिछने पर या कंगाल खोए द्रव्य के मिलने पर
एक दुसरे को हृदय से लगाते हैं उसी मांतिं मल्दार
राव की माता अपने पुत्र को बारंबार हृदय से छगा मुख
का 'चुवन करने लगी और उसके अग की धूल झाड़कर
अपने पर्छू से, जो थोड़ी देर पहले अश्रक्षों स भींग गया
था उसक सुख का पाछन उगा । पश्चात् पुन्न का भभमयुक्त
चचनों से अकेला न निकठने का थोड़ा उपदेद दे, ौर छाया
डुआ भोजन खिला उसको घर लिवा ले गई 1 इधर भोजशसज
भी अपनी खेती के धंधे में जुट गया, परंदु उसके मन में
न्यद्द विश्वास दोगया कि मल्द्ारी काई दोनददार उड़का हैं ।
गाँव में थारे थार सर्प का मरद्दारी पर छाया करके पैठने का
समाचार फैला;/तथ मर्येक व्याक्ति अपनी अपनी युद्धि के अनुसार
न्तक करन छया | काइ कइता, यद्दी एक दिन राजा दोगा,
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