श्री निर्वाण लक्ष्मी पति स्तुति | Shri Nirvana Laxmipati Stuti

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Book Image : श्री निर्वाण लक्ष्मी पति स्तुति  - Shri Nirvana Laxmipati Stuti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५४ वह बिलकुल थोड़ा है । महा मल्लीन अपडित्र संशय . उत्पन्न करने वाला झर कबूतरी वगुलों की पंक्ति और काक आदि का व्यभिचारी है अथाीत्‌ शझुनी मजुष्य कभी कभी यड पूर्ण निश्वय सहीं कर सकता कि कबूतरी वक आदि के सास पड़ जाने से क्या फल होगा | इसलिये तु उस ज्ञान से कभी सी किसी वात का निश्चय सहीं कर सकता यदि ठुके अपसे स्वरूप में लीन उत्तस गति दिव्यध्यत्ति और अतिश्य आसन्द सडित आत्मा का ज्ञान है तो तू उसी से सब चातोंका निश्धय कर सकता हैं । क्योंकि उस समय तेरा ज्ञान स्वाघीन आत्मिक है । अथोदू जवतक च्यात्सा को स्वाधीन चोघ प्राप्त चटीं होता तव तक वदद लिस्पंदेद दोकर किसी भी पदार्थ का निश्चय नहों कर सकता तथा इसका लाभ स्वस्थ उत्तम गति और दिव्य चसि के धारक एवं आनन्द स्वरूप आत्मा के निश्चय से होता है । इसलिये हे आरमव्‌+ यदि तू बास्तदिक सब पदार्थों का निश्व्य करना चाहना हैं तो इसी स्वाघीन ज्ञान का तु लाथ कर व्यर्थ के शदन ज्ञान सें मत फंते। क्योंकि वहद ज्ञानस्तोक विलडल थोड़ा ज्ञान है । अदिशद्‌ छार्थातु परोक्ष छोर संशय करने वाला है तथा कचूरों च्ादि के सामने पड़जाने से कुछ और शझुनी सममभ्द लिया जाता है । और कुछ और ही हो जाता हैं इसलिये ये सभी व्यमिचारी हैं । है इसलिये हे जीव तू जिसके प्रसाद से स्वरूप ज्ञान झथापू अपने सिज आझारम स्वरूप का छास उत्पन्न हो ऐसे




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