ब्रह्म ज्ञान दर्पण | Brahm Gyan Darpan

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Brahm Gyan Darpan by भैरव दत्त - Bhairav Dutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ श्र तु चेतकर भेरू ॥ कालका बाज रहा डेरू ॥ जिन्हों घर घूमते हाथी हजारो लास थे साथी । उन्हों को होगई माटी तू सुख भर नीद बयो सोया ॥ निन्‍हों घर लाल श्री हीरा सदा सुख पान का बीडा । न्हो को खा गये कीडा तु सुख भर नीद क्यो सोया ॥ जिन्‍्हों घर पालकी घोड़ा जडाऊ जहाज का जोडा । बही सब काल ने तोडा तू सुख भर नोद बयो सोया ॥ नौबत बाजती महल छतीसो राग । बहु घर श्रव खाली पडा बैठा लागा कांग ॥। घास पास जोधा खड़ा हाथ लिये तलवार । सब ही सब के देखते काल लेगयो मार ॥ दुनिया का यह हाल. समभकले मनवा मेरा । घरे हि. रहे धनमाल होय जगल॑ मे डेरा ॥ गई सवानोी श्रायो बुढापों जीवन के दिन चार । जब तक इवासा है देह से श्रात्मज्ञान विचार ।




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