अलबेरूनी का भारत भाग प्रथम | Alberuni Ka Bharat Bhag 1

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Alberuni Ka Bharat Bhag 1  by श्री सन्तराम - Shri Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) को श्लार कूच किया । इरात में दो ये राजद्रादी से मिले । उसने सबको दण्ड दिया | अलीस्ेशवन्द को भटपट मार डाला, यूसुफ को बन्दोगृद्द में फेंक दिया, श्रार अपने भाई मुहम्मद की भाँखें निकाल डाली । जुलकाद मास ( ३१ श्रक्तुचर से रे नवम्बर तक में मसऊद झपन पिता के साम्राव्य का एकमात्र अधिकारी सीकृत हुशा। उसने शरदऋतु दिन्दूकुश कं उत्तर में व्यतीत की, फिर कुछ दिन घत्ख़ में ठद्दर कर ग़ज़नी की राजधानी में, ८ वों जमादी द्वितीय, सन्‌ ४२२ दिजरी ( तददुसार ३ जून १०३१ ईं० ) को, प्रवेश किया | मसऊद चही सम्राट है जिसके नाम पर शझलवेरूनी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “श्रलकानूतुनमस ऊदो” समर्पित की थी | श्रलचेरूनी ने ये राजनेतिक उतार चढ़ाव सब देखे थे । तेरद चप॑ तक उसने मदमूद की श्रपूर्व शक्ति शरीर वेमब का अवलोकन किया था ! जिस समय उसने यद्द पुस्तक लिखी उस समय उसकी श्रायु शरद चर्प की शी । अ्लवेरूनी नें कीं चैठ कर पुस्तक लिखी इसका पता फेवल पुस्तक के श्रन्तिम प्रष्ठ पर के नाट से दी लगता दै, कि इस्तलेख ग़ज़नी में समाप्त हुआ । उस समय गृज़नी एशिया की बड़ी बढ़ी राजधानियों में से एक थी । यहाँ उसे सच प्रकार के हिन्दुओं से परामश लेने के यघे्ट श्रवसर प्राप्त थे । यहाँ हिन्दूनिवासियों की संख्या सम्भवत: बहुत श्रधिक होगी; क्योंकि काबुलिस्तान के अधिवासी हिन्दुओं तथा लड़ाई में कद दोकर आये हुओं के घ्तिरिक्त इस वैभवशालिनी नगरी की ्रार झार भी बहुत से स्वतंत्र मनुष्य खिंच झाये थे । ये लोग यहाँ सेवक, शिरपी, शार कारीगर बन कर उसी प्रकार मुसलमान विजेताओं के लिए मसजिदें झौर थे




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