योग दर्शन | Yog Darshan
श्रेणी : योग / Yoga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.27 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बृत्ति और सटीक योगर्विशिका छपबासे के बाद भी उनका हिंदी
सार पुस्तकके अन्तमें दिया गया है। सार कहनेका अभिपधाय यह
है कि वह मूलका न तो अक्षरा: अनुवाद है और न अधिकल
भावानुवाद ही है । अधिकल भावानुवाद नहीं है इस कथनसे
यह न समझना कि हिंदी सारमें मूल ग्रंथका असली भाव छोड
दिया है, जहाँतक होसका सार लिखनेमें मूल ग्न्थके असली
भावकी ओग ही खयाल रक््खा है। अपनी औओरसे कोई नें
बात नहीं लिखी है पर मूल गन्थमें जो जो बात जिस जिस
क्रमसे जितने जितने संक्षेप या विस्तारके साथ जिस जिस
ढँगस कही गई है वह सब हिंदी सारमे ज्यों की त्यों लानेकी
हमने चेष्टा नहीं की है। दोनों सार लिखनेका दंग भिन्न
भिन्न है इसका कारण मूल यंथॉका विषयभेद और रचना भेद है।
पहले ही कहा गया है कि बृत्ति सब योग सूत्रोंके ऊपर नहीं
है। उसका विषय आचार न होकर तत्वज्ञान है | उसकी भाषा
साधारण संस्कृत न होकर विदिष्ट संस्कृत अथात् दाझेनिक
परिभाषासे मिश्रित संस्कृत और वहभी नवीन न्याय परिभा-
चाके प्रयोगसे लदी है। अतपव उसका अक्षरदाः अनुवाद या
अधविकल भावानुवाद करनेकी अपेक्षा हमको अपनी स्वीकृत
पद्धति ही अधिक लाभदायक जान पड़ी है। वृत्तिका सार लिख-
नेमें यह पद्धति रखी गई है कि सूत्र या भाष्यके जिस जिस
मन्तन्यके साथ प्रणेरूपसे या अपणेरूपसे जेन दृष्टिके अनुसार
वृत्तिकार मिल जाते हैं या विरुद्ध होते हैं उस उस मन्तव्यका
उस उस स्थानमैं पूथक्रण पर्वक लिखकर नीखे घृत्ति
कारका संवाद या विरोध क्रमदा: संधषेपम सूचित कर दिया है |
सब जगह पवंपक्ष और उत्तर पक्षकी सब दलीलें सारसे नहीं
दी हैं । सिफं सार लिखमेमें यही ध्यान रक््खा गया है कि
बृत्तिकार कीस बात पर कया कहना चाहते हैं ।
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