मन मिर्ज़ा तन साहिबां | Man Mirza Tan Sahiban

Book Image : मन मिर्ज़ा तन साहिबां  - Man Mirza Tan Sahiban

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(अन्तर्शक्ति) का नाम ईश्वर था-पहचान खो गई, तो ईश्वर की जो स्थापना हुई वह बाहर से हुईं। और उसी का नाम मजृहव हुआ। धर्म खो गया, तो उसके प्रति-कर्म में से मजहव पैदा हुआ हमारी दुनिया में वक्त-वक्त पर कुछ ऐसे लोग जन्म लेते हैं-जिन्हें हम देवता, महात्मा, गुरु और पीर प्रैगम्बर कहते हैं। वह उसी जागृत चेतना की सूरत होते हैं, जो इन्सान से खो चुकी होती है। और वह हमारे पीर और पैगम्बर, इस थके हुए, हारे हुए, इन्सान की अन्तर्चेतना को जगाने का यत्न होते हैं, लेकिन उनके वाद, उनके नाम से, जब उनके यत्न को संत्थाई रूप दिया जाता है, तो वक्त पाकर, वह यात्रा वाहर की यात्रा तो वनती है, अन्तर की यात्रा नहीं बनती। धर्म अन्तर की यात्रा है- जड़ से लेकर चेतन तक की यात्रा... स्थूल से लेकर सुकष्म तक की यात्रा... और : सीमित होने से लेकर असीम होने तक की यात्रा... धर्म अन्तर से आदेश लेता है, और मजूृहब बाहर से। और इसीलिए वक्त पाकर, हर मज़हब के हाथों अपनी चेतना का विज्ञान खो जाता है... यह भीतर के आत्मवल का और वाहर की सत्ता का अन्तर है। यह भयमुक्त हीने का, और भय-ग्रतित होने का अन्तर है। और वह, जो ख़्यालों के पैरों में वजती हुई पायल थी, वह पैरों की जंजीर वनने लगती है... और अन्तर शक्ति का एक टुकड़ा जब अपनी ही अन्तर शक्ति के दूसरे टुकड़े पर हमलावर हो जाता है, तो हर मज़ृहव का नाम हर दूसरे मजूहव के नाम से टकराने लगता है... आज हमारे देश के जो हालात हैं, यह हमारे अपने होठों से निकली हुई एक भयानक चीख है। और हम-जो टूट्ते चले गए थे, हमने इस चीख को भी टुकड़ों में वांट दिया। हिन्दू चीख, तिक्ख चीख और मुस्लिम चीख कहकर इस चीख का नामकरण' हुआ... चेतना की अन्तर्घृनि




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